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ओंके बहुमान्य मनुजी भी मनुस्मृतिके नवमाध्यायमें कहते हैं कि:
" त्रीणि वर्षाण्युदीक्षेत कुमार्यतुमती सती ।
उर्द्ध तु कालादेतस्माद्विन्देत सदृशं पतिम्" ॥१०॥ अर्थात-कन्याको ऋतुमती होनेके पश्चात् तीन वर्ष तक अपनेसे अधिक गुणवाले पतिकी राह देखनी चाहिइ । तीन बर्षमें यदि कोई अधिक गुणवान वर न मिले तो फिर वह समान गुणवालेके साथ व्याह करले ।
इस कथनसे स्पष्ट विदित होता है कि, मनुजी जैसे शास्त्रकार भी ऋतुमती होनेके पश्चात् तीन वर्ष तक विवाह करनेका निषेध करते हैं; परन्तु बिचारे अज्ञान मा-बाप अपनी बालिका
ओंको लोकापवादके डरसे और झूठी मान्यताके कारण ब्याह देते हैं। जीवनभर ब्रह्मचर्य पालनेका प्रभाव ।
हम पहिले यह बात बता चुके हैं कि कमसे कम २५ वर्ष तक पुरुष को और १६ वर्ष तक स्त्रीको अवश्य ही ब्रह्मचर्य पालना चाहिए । चाहे कुछ भी हो, इतनी अवस्था तक तो अवश्यमेव वीर्यकी रक्षा करनी चाहिए। इसके बाद वे गृहस्थाश्रममें जानेके अधिकारी होते हैं । पहिले नहीं । परन्तु हमारी मान्यतानुसार तो मनुष्य यदि अपने जीवनके अन्त तक अस्खलित ब्रह्मचर्य पाले, तो उसके लिए जगत्में ऐसा कोई कार्य नहीं रहै
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