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कहलाने लगती है। इससे अधिक अफसोसकी दूसरी और कौनसी बात हो सकती है ! शारीरक स्थितियोंको जाननेवाले पूर्वपुरुष-मुश्रुत जैसे आचार्य कमसे कम २५ से लेकर ४० वर्षकी उम्र तकमें संसार में पड़नेका, गृहस्थाश्रमी बननेका अर्थात् लग्न करनेका समय बताते हैं, परन्तु आजकल छोकरे के बाप बननेके उम्मेदवार चौदह या पंद्रह वर्षकी उम्रमें हीउम्मेदवारीमें सफलता प्राप्त कर लेते हैं। समयकी कैसी बलिहारी है ! यह तो हम सहज हीमें समझ सकते हैं कि जिनका वीर्य अभी बंधना शुरु भी नहीं हुआ है, ऐसे वीर्यसे पैदा होनेवाली संतान कितनी दीर्घायुषी और बलवान् हो सकती है ? सुप्रसिद्ध ग्रंय चरकका मत है कि:
"उनषोडशवर्षायामप्राप्तः पंचविंशतिम् । यद्याधत्ते पुमान् गर्भ कुक्षिस्थः स विपद्यते ॥ १ ॥ जातो वा न चिरं जीवेभीवेद्वा दुर्बलेन्द्रियः। ............................................" ! २ ।।
सोलह वर्ष तक ब्रह्मचर्यका पालन नहीं करनेवाली स्त्री यदि पचीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य नहीं पालनेवाले पुरुषसे गर्भ धारण करती है तो उससे कभी संतति उत्पन्न नहीं होती है; और यदि हो भी जाती है, तो वह दीर्घायुषी नहीं होती है । अर्थात वह जल्दी ही मर जाती है । दैवयोगसे आयुकी प्रबलताके कारण यदि वह जीवित रह भी जाती है तो वह दुर्बलेन्द्रिय-कमजोर -तो अवश्य ही रहती है।
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