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इस मंदिर में शिलालेख लगा हुआ है। इसकी गूलनायक आदिनाथ मुख्यचतुर्विंशति जिन की धातु मूर्ति, सं० १३८० में जिनकुशलसूरि द्वारा प्रतिष्टित मंडोर मे लाई गई यो। जैसलमेरी पीले अवर से यह सुंदर मंदिर बना हुआ है । इसके गर्भगृहों (गुभारों) में से एक में १०५० धातु प्रतिमाएं हैं जो सिरोही की लूट सं० १६३६ में मंत्रीश्वर काचन्द के प्रयत्न से यहाँ प्राप्त हुई रखी हुई हैं। इनमें नौवींदशवीं शताब्दि से १६वीं शताब्दि तक की विविध कला पूर्ण धातु मूर्तियां हैं। इतनी अधिक धातु पतिमानों का एकीकरण अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा। मीकानेर का गह सबसे पहला मंदिर होने के साथ साथ इतनी अधिक और प्राचीन प्रतिमानों के संरक्षण केन्द्र होने की दृष्टि से भी इस मार का बड़ा महत्त्व है । गुभारे की ये प्रतिमाएं कई वर्षों के अनन्तर किसी खास दुर्भित व रोगोपशान्ति श्रादि के प्रसंग में निकाली जाती है । मूल मंदिर में एक कायोत्सर्ग की धातु प्रतिमा गुप्त काल की बड़ी सुंदर है और मूल मादर के दाहिनी ओर प्रदिक्षणा में स० ११७६ २। परिकर व अन्य मान पट्ट आदि दर्शनीय हैं । बांई ओर शान्तिनाथ भगवान का स्वतंत्र मंदिर है । यह मूल मदिर कंदोई बाजार के उत्तरी नुक्कड़ पर अवस्थित है । इसका प्रवेश द्वार छोटा होने पर भी कला- ' पूर्ण है । १३ गवाड़ का यह पंचायती मंदिर है ।
२ वासुपूज्यजी का मंदिर
यह उपर्युक्त मन्दिर के पास की मथेरण गली में डागों के महावा जी के पास ही है। मूलतः यह वच्छावतों का देरासर था। सं० १६३६ में सिाही को लूट से प्राप्त प्रतिमात्रों में से वासुपूज्य चतुर्विशति धातु प्रतिमा को यहाँ मूलनायक के रूप में स्थापित किया गया था। दोनों ओर दो देहरियां है । ____ पास ही में सटा हुआ दिगंबर जैन मंदिर है ।
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