________________
प्रारम्भ किया और सतत परिशीलन के परिणाम स्वरूप अनेक ऐसे तथ्य ढूंढ़ निकाले कि जिससे 'पृथ्वी के आकार, भ्रमण, गुरुत्वाकर्षण, चन्द्र की परप्रकाशिता' जैसे विषयों पर आधुनिक वैज्ञानिकों की मान्यताओं के मूल में स्थित 'भ्रान्तधारणाएँ, कल्पनाएँ, तथा अपूर्णताएँ' प्रत्यक्ष प्रस्फुटित होने लगीं।
ऐसे सारपूर्ण विचारों को भूगोल वेत्ताओं के समक्ष उपस्थित करने और एतद्विषयक मनीषियों के उपादेय विचारों को जानने के लिये अनेक मनीषियों ने मूनिवर्य से प्रार्थनाएँ की, और उन्होंने अपनी साधना में निरन्तर संलग्न रहते हुए भी लोकोपकार की दृष्टि से अपने विचारों को लिपिबद्ध करने की कृपा की। उन्हीं के शुभ निर्देशन में
प्रस्तुत पुस्तिका शासन दीपक पूज्य आचार्य श्री कैलाश सागर सूरीश्वर शिष्य पूज्य मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज द्वारा गुजराती में तैयार करके दीगई थी, जिसका हिन्दी में अनुवाद एवं सम्पादन करके प्रकाशन किया गया है ।
विश्वास है विज्ञ पाठक इसका सावधान-मस्तिष्क से परिशीलन करेंगे तथा इस विषय पर अपने विचारों से हमें अवगत कराने की अनुकम्पा करेंगे।
-रुद्रदेव त्रिपाठी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com