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होती हैं और सूर्य को स्थिर व पृथ्वी को चर मान लेने में कुछ गणित सम्बन्धी सुविधायें मिलती हैं। भ-भ्रमण पर जो बल दिया जा रहा है वह गणितज्ञों का सुविधावाद है।
इसमें रस लेने वाले समझते हैं कि प्राचीन ग्रह कक्षाओं में और नूतन ग्रह वेत्ताओं में इस सम्बन्ध को लेकर कोई अधिक उथल-पुथल नहीं हुई है । भारतीय व अभारतीय प्राचीन व्यवस्था में पृथ्वी केन्द्र है और चन्द्रमा, बुध, शुक्र, सूर्य, मंगल बृहस्पति तथा शनि क्रमश: अपनी-अपनी कक्षा पर घूमते हैं ।
सौर केन्द्रिक जगत् की कक्षायें केन्द्र का परिवर्तन होकर इस प्रकार बनती हैं-केन्द्र में सूर्य और तत्पश्चात् क्रमशः बुध, शुक्र, पृथ्वी मंगल, बृहस्पति, शनि ये छः ग्रह हैं। चन्द्रमा को नवीन विज्ञान में ग्रह नहीं माना है। वह पृथ्वी की परिक्रमा करता है, इस लिये पृथ्वी का उपग्रह है। नवीन कक्षा व्यवस्था में तीन ग्रह बूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो (बारुणी, वरुण और यम ) और जोड़े गये हैं।
आज सूर्य चलता है या पृथ्वी यह विषय अधिक महत्व
लल्लाचार्य-चन्द्र, न, भार्गव, दिनेश, कुचार्य सौरिभानिधिते क्रमत उध्र्वगतिस्थितानि। -शि• • बम्बमाधिकारी खोक १२ । भास्कराचार्य-भूपेः पिण्ड शशांकज कवि रवि कुज्याकि नक्षत्रकक्षा।
-सिद्धान्त शिरोमणि गोमायाग भुवनकोष २ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com