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प्रस्तावना।
हो तो जन्म सं. १५७० के लगभग संभव है। सैद्धान्तिक ज्ञान आपका बहुत बढ़ा चढ़ा था। अपने समय के आप महान् गीतार्थ थे। यु. जिनचन्द्रसूरि
आदि भी सैद्धान्तिक विषयों में आप से सलाह लेते थे। सं १६०४ में जिनमाणिक्यसूरिजी के आदेश से रचित सुबाहु सन्धि में आपने उपाध्याय पद का सूचन किया है अतः इससे पूर्व ही जिनमाणिक्यसूरिजी ने श्रापको उपाध्याय पद प्रदान किया निश्चित है । जिनचन्द्रसरिजी के समय में तो तत्काल उपाध्याय पदस्थ मुनियों में सबसे बड़े होने से आप महोपाध्याय पद से प्रसिद्ध हुए। आपकी भाषा बढ़ी प्रौढ़ एवं प्राचीनता को लिये हुए थी, अतः आपकी : ७ वीं शताब्दि की रचनाओं में भाषा १५-१६ वीं का सा आभास मिलता है। यु. जिनचन्द्रसूरिजी के पौषधप्रकरणवृत्ति का आपने संशोधन किया व उनके आदेश से ही साधुवंदना (गा. ८६) एवं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति वृत्ति की रचना की ।
सं. १६१६ में जेसलमेर में मंत्रि श्रीवंत पुत्र पद्मसिंह ने परिवार सह आपको संदेहविषौषधि पत्र ६८ की प्रति बहराई थी। सं. १६४० में जिनवल्लभसूरिजी के प्रश्नोत्तरषष्टिशतक काव्य पर वृत्ति *(प्र. १५.०) बनाई एवं सं. १६४५ में जेसलमेर में जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वृत्ति (ग्र १३२७५) की रचना की । वृद्धावस्था के कारण इन दोनों वृत्तियों की रचना में आपके शिष्य पद्मराज ने सहायता की थी । जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति वृत्ति का प्रथमादर्श
आपके प्रशिष्य ज्ञानतिलक ने तैयार किया था। सं. १६५० में जेसलमेर में जिनकुशलसूरिजी की चरण पादुका की प्रतिष्ठा की, और संभवतः इसके पश्चात् शीघ्र ही वहीं स्वर्ग सिधारे ।
___ आपकी उल्लेखनीय बड़ी रचनाओं का निर्देश उपर किया जा चुका है. अब स्तवनादि की सूचि दी जा रही है
१. चौवीस जिन स्तवन (नामकरण गर्भित) गा. २० हमारे संग्रह में २. , ,, ,, (५ कल्याणक गर्भित) गा. २२ प्रकाशित.
*इसकी एक प्रति मुनि विनयसागरजी के संग्रह में है, और उसके प्रकाशन का भी विचार कर रहे हैं।
x2. जैसलमेर लेख संग्रह भा.३ पृष्ट १२१ लेखांक २५९. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com