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________________ भारत के प्राचीन जैन तीर्थ यह स्थान आजकल अमरावती के चांदूर ताल्लुका में है । यहाँ जैन मन्दिर है। अचलपुर (एलिचपुर ) विदर्भ देश का दूसरा मुख्य नगर था । इसके पास कृष्णा ( कन्हन ) और बेन्या (बेन) नदियाँ बहती थीं। इन नदियों के बीच ब्रह्मदीप नाम का द्वीप था । यहाँ बहुत से तपस्वी रहते थे। ब्रह्मदीपिका नाम की जैन श्रमणों की शाखा का उल्लेख कल्पसूत्र में मिलता है, इससे मालूम होता है कि यह स्थान जैनधर्म का केन्द्र रहा होगा। अचलपुर का उल्लेख प्राचार्य हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत व्याकरण में किया है । मुक्तागिरि निर्वाणक्षेत्र माना जाता है। १८वीं सदी के यात्रियों ने इसे शत्रुञ्जय के तुल्य तीर्थ बताते हुए यहाँ चौबीस तीर्थङ्करों के उत्तुङ्ग प्रासादों का उल्लेख किया है। यह स्थान एलिचपुर से बारह मील दूर है। यहाँ के अधिकांश मन्दिर १६वीं सदी के बने हुए हैं। अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ की कथा उपदेशसप्ततिका में आती है। यहाँ श्रीपाल का कुष्ठ दूर हुआ था। यह स्थान प्राकोला से लगभग उन्नीस कोस दूर शिरपुर ग्राम के पास है । भातकुली अतिशय क्षेत्र माना जाता है । यह स्थान अमरावती से दस मील के फ़ासले पर है । पार्श्वनाथ की यहाँ मूर्ति है । २: हैदराबाद तगरा श्राभीर देश की सुन्दर नगरी थी। आभीर देश जैन श्रमणों का केन्द्र था । यहाँ आर्य समित और वज्रस्वामी ने विहार किया था । तगरा में राढ़ाचार्य का आगमन हुआ था। करकण्डुअचरिय में इस नगर का इतिहास दिया हुआ है। तगरा की पहचान उसमानाबाद जिले के तेरा नामक स्थान से की जाती है। ( ६२ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034773
Book TitleBharat ke Prachin Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherJain Sanskriti Sanshodhan Mandal
Publication Year1952
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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