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________________ पंजाब-सिन्ध-काठियावाड़-गुजरात-राजपूताना-मालवा-बुन्देलखंड यह स्थान काठियावाड़ में पालिताना स्टेशन से दो मील के फ़ामले पर है । यहाँ जैन यात्रियों के ठहरने के लिए ग्रालीशान धर्मशालाएँ बनी वलभी प्राचीन काल में मौराष्ट्र की राजधानी थी। ईमवी मन की छटी शताब्दि में यहाँ देवधिगणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में जैन श्रागमों की ---सङ्कलना के लिये अंतिम सम्मेलन हुअा था । देवधिगणि की यहाँ मूर्ति स्थापित है । हुअन-सांग के समय यहाँ अनेक बौद्ध विहार मौजूद थे। नालन्दा के समान वलभी भी बौद्ध विद्या का केन्द्र था। यहाँ अनेक प्राचीन सिक्के और ताम्रपत्र उपलब्ध हुए हैं। वलभी की पहचान भावनगर से उत्तर-पूर्व में १८ मील पर वला नामक स्थान से की जाती है । हत्थक प्य नगर का उल्लेख जैन सूत्रों में आता है । पञ्च पांडवों का यहाँ आगमन हुआ था। पांडवचरित के अनुसार, यह नगर रैवतक पर्वत से बारह योजन की दूरी पर था । शिलालेखों में हस्तकवप्र का उल्लेख आता है। इस नगर की पहचान भावनगर रियासत के हाथव नामक स्थान से की जाती है। महवा बन्दर भावनगर रियासत में है । इसका दूमरा नाम मधुमती था । पार्श्वनाथ का यह अतिशय क्षेत्र माना जाता है। ३: गुजरात जैन और बौद्ध ग्रन्थों में लाट देश का उल्लेख पाता है, यद्यपि इसकी गणना पृथक रूप से प्रार्य देशों में नहीं की गई । वर्षाऋतु में यहाँ गिरियज्ञ नामक उत्सव, तथा श्रावण सुदी पूर्णिमा के दिन इन्द्र का उत्सव मनाया जाता था। इस देश में वर्षा से खेती होती थी, और यहाँ ग्वारे पानी के कुँए थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034773
Book TitleBharat ke Prachin Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherJain Sanskriti Sanshodhan Mandal
Publication Year1952
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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