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________________ भारत के प्राचीन जैन तीर्थ तक्षशिला का दूसरा नाम धर्मचक्रभूमिका था। यह नगरी बहुत समृद्ध थी, तथा यहाँ राजा अशोक अपने पुत्र कुणाल के साथ रहता था । तक्षशिला की खुदाई में अनेक मिक्के, ताम्रपत्र तथा स्तूपों और विहारों के ध्वंसावशेष उपलब्ध हुए हैं। तक्षशिला की पहचान पाकिस्तान में गवलपिंडी ज़िले के शाहजी की ढेरी नामक स्थान से की जाती है । माकेत के पश्चिम में थूणा ( स्थाणुतीर्थ ) जैन श्रमणों के विहार की सीमा थी । इम नगर का संबंध पाण्डवों के इतिहास से है । हुअन-मांग के समय यहाँ अनेक बौद्ध स्तूप बने हुए थे । स्थानेश्वर की पहचान सरस्वती और घाघरा के बीच कुरुक्षेत्र से की जानी है । मल्लों के थूणा से यह भिन्न है । रोहीतक का उल्लेख महाभारत और दिव्यावदान में आता है । प्राचीन ममय में गेहीतक समृद्धिशाली नगर था । इमकी पहचान अाधुनिक रोहतक से की जाती है । अभय देव के अनुसार मौवीर (मिन्ध ) सिन्धु नदी के पास होने के कारण सिन्धु-सौवीर कहा जाता था, यद्यपि बौद्ध ग्रन्थों में सिन्धु और सौवीर को अलग-अलग प्रदेश मानकर रोरुक को मौवीर की राजधानी बताया है । सिन्धु देश की नदियों में बाढ़ बहुत आती थी । दिगम्बर परम्परा के अनुसार रामिल्ल, न्थूलभद्र और भद्राचार्य ने उजयिनी में दुष्काल पड़ने पर मिंधु देश में विहार किया था। जैन ग्रन्थों में सिन्धु-सौवीर की राजधानी का नाम वीतिभय पट्टन बताया गया है । इम नगर का दूसरा नाम कुंभारप्रक्षेप था । कहते हैं कि एक बार महर्षि उदयन किसी कुम्हार के घर ठहरे हुए थे। वहाँ उनके भानजे ने उन्हें विष दे दिया जिससे उनकी मृत्यु हो गई। इस पर देवताओं ने कुम्हार के घर को छोड़कर नगर में सर्वत्र धूल की घोर वर्षा की, अतएव इस नगर का नाम कुंभारप्रक्षेप पड़ा । महावीर द्वारा उदयन को दीक्षा दिये जाने का उल्लेख जैन ग्रन्थों में आता है । इस नगर में महावीर की चन्दन-निर्मित प्रतिमा थी, (४८ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034773
Book TitleBharat ke Prachin Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherJain Sanskriti Sanshodhan Mandal
Publication Year1952
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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