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निवेदन भारतीय इतिहास की सामाजिक और राजनैतिक सामग्री जो प्राचीन जैन ग्रन्थों में बिखरी पड़ी है उसका उपयोग करके डॉ. जगदीशचन्द्र जी ने प्राचीन भारत के विषय में अपनी पुस्तक अंग्रेजी में लिखी थी। उक्त पुस्तक के लेखन के समय भारत के प्राचीन नगरों के विषय में जो सामग्री उन्हें जैनागम और पालिपिटकों में मिली उसी के आधार पर प्रस्तुत पुस्तक उन्होंने लिखी है। पुस्तक का नाम यद्यपि 'भारत के प्राचीन जैन तीर्थ' दिया है तथापि यह पुस्तक केवल जैनों के लिए ही नहीं किन्तु भारतीय प्राचीन इतिहास और भूगोल के पंडितों के लिए भी अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी इसमें तनिक भी संदेह नहीं। क्योंकि इसमें जैन तीर्थों के नाम से जिन नगरों का वर्णन किया है वह वस्तुतः भारतवर्ष के प्राचीन नगरों का ही वर्णन है। __लेखक ने, जहाँ तक संभव हुआ है, उन प्राचीन नगरों का आज के नकशे में कहाँ किस रूप से स्थान है यह दिखाने का कठिन कार्य करके प्राचीन इतिहास की अनेक गुत्थियों को सुलझाने का सफल प्रयत्न किया है। इससे जैनों को ही नहीं किन्तु भारतीय इतिहास के पंडितों को भी नई ज्ञानसामग्री मिलेगी। इस दृष्टि से प्रस्तुत पुस्तक का महत्त्व बहुत बढ़ गया है। ___ पुस्तक में भगवान् महावीर कालीन भारत का और भगवान् महावीर के विहार स्थानों का भी नकशा दिया गया है। उसका आधार उनकी उक्त अंग्रेजी पुस्तक है। हमारी इच्छा रही कि पुस्तक में कुछ चित्र भी दिए जाते किन्तु मंडल की आर्थिक मर्यादा को देख कर वैसा नहीं किया गया। डॉ. जगदीशचन्द्र ने प्रस्तुत पुस्तक मंडल को प्रकाशनार्थ दी एतदर्थ में उनका आभार मानता हूँ।
ता० ८-२-५२
बनारस-५.
निवेदक दलसुख मालवणिया
मंत्री, बन संस्कृति संशोधन मंडल
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