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________________ भारत के प्राचीन जैन तीर्थ गिरि से की जाती है । पहाड़ी के ऊपर शीतल जल के कुण्ड हैं । जैन सूत्रों के अनुसार काकन्दी में बहुत से श्रमणापामक रहते थे । काकंदिया जैन श्रमणों की शाखा थी। महावीर ने इस नगरी में विहार किया था। मंगेर जिले के काकन नामक स्थान को प्राचीन काकन्दी माना जाता है। कुछ लोग गोरखपुर जिले के अन्तर्गत खग्वंदो ग्राम को काकन्दी मानते हैं । भद्दिय में बुद्ध और महावीर ने विहार किया था । बौद्ध सूत्रों के अनुसार भद्दिय अंग देश में था । इसकी पहचान मुंगेर से की जाती है। मंगेर का प्राचीन नाम मुग्गलगिरि था । गया के दक्षिण में मलय नाम का जनपद था। यह वस्त्र के लिये प्रसिद्ध था। भद्रिलपुर मलय की गजधानी थी । भद्रिलपुर की गणना अतिशय क्षेत्रों में की गई है। भद्रिलपुर की पहचान हज़ारीबाग़ ज़िले के भदिया नामक गाँव में की जाती है । यह स्थान हंटरगंज से ६ मील की दूरी पर कुलुहा पहाड़ी के पाम है । यहाँ अनेक खंडित जिन मूर्तियाँ मिली हैं । यह तीर्थ विच्छिन्न है । ग्राश्चर्य है कि जैन लोगों ने इसे तीर्थ मानना छोड़ दिया है ! हज़ारीबाग़ ज़िले का दूसरा महत्त्वपूर्ण स्थान सम्मेदशिखर है। इस ममाधिगिरि, समिदगिरि, मल्ल पर्वत, अथवा शिखर भी कहा जाता है । सम्मेदशिग्वर की गणना शत्रुजय, गिरनार, आबू और अष्टापद नामक तीर्थों के माथ की गई है । यहाँ से जैनों के २४ तीर्थंकरों में से २० तीर्थंकरों का निर्वाग हुआ माना जाता है। सम्मेदशिखर की पहचान वर्तमान पारसनाथ हिल में की जाती है। यह पहाड़ी ईसरी स्टेशन से दो मील की दूरी पर है। मलय देश के आमपाम का प्रदेश भंगि जनपद कहलाता था। इस जनपद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034773
Book TitleBharat ke Prachin Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherJain Sanskriti Sanshodhan Mandal
Publication Year1952
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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