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________________ बिहार - नेपाल - उड़ीसा-बंगाल - बरमा गया है । वैभार का वर्णन करते हुए कहा है कि यह पहाड़ी बहुत चित्ताकर्षक थी, अनेक वृक्ष और लताओं से मंडित थी, नाना प्रकार के फल-फूल यहाँ खिलते थे, और नगरवासी यहाँ क्रीड़ा के लिए जाते थे । विपुलाचल से अनेक जैन मुनियों के मोक्ष-गमन का उल्लेख मिलता है । बौद्ध ग्रन्थों से पता लगता है कि विपुलाचल सब पहाड़ियों में ऊँचा था, और यह प्राचीनवंश, वक्रक तथा सुपश्य नाम से प्रख्यात था । वैभार पर्वत के नीचे तपादा अथवा महातपापतीरप्रभ नामक गरम पानी को बड़ा कुण्ड था । जैन सूत्रों में इस कुण्ड की लम्बाई पाँच सौ धनुप बताई गई है । राजगिर में आजकल भी गरम पानी के सोत मौजूद हैं, जिन्हें तपोवन के नाम से पुकारा जाता है । सातवीं सदी के चीनी यात्री हुअन-सांग ने अपने विवरण में इनका उल्लेख किया है । बुद्ध और महावीर ने राजगृह में अनेक चातुर्मास व्यतीत किये थे । जैन ग्रन्थों के अनुसार यहाँ गुणसिल, मंडिकुच्छ, मोग्गरपाणि अादि चैत्य-मन्दिर थे। महावीर प्रायः गुणसिल चैत्य में ठहरा करते थे । वर्तमान गुणावा, जो नवादा स्टेशन से लगभग तीन मील दूर है, प्राचीन गुणशिल माना जाता है । राजगृह व्यापार का बड़ा केन्द्र था । यहाँ दूर-दूर के व्यापारी माल खरीदने आते थे। यहाँ से तक्षशिला, प्रतिष्ठान, कपिलवस्तु, कुशीनारा आदि भारत के प्रसिद्ध नगरों को जाने के मार्ग बने हुए थे । बौद्ध सूत्रों में मगध में धान के सुन्दर खेतों का उल्लेख पाता है। ___बुद्ध-निर्वाण के पश्चात् राजगृह की अवनति होती चली गई । जब चीनी यात्री हुअन-सांग यहाँ आया तो यह नगरी अपनी शोभा खो चुकी थी। चौदहवीं सदी के विद्वान् जिनप्रभ सूरि के समय राजगृह में ३६,००० घरों के होने का उल्लेख है, जिनमें आधे घर बौद्धों के थे। वर्तमान राजगिर, जो विहार शरीफ़ से दक्षिण की ओर १३-१४ मील के फ़ासले पर है, प्राचीन राजगृह माना जाता है। पाटलिपुत्र (पटना) मगध देश की दूसरी राजधानी थी। पाटलिपुत्र कुसुमपुर, पुष्यपुर और पुष्यभद्र के नाम से भी पुकारा जाता था । कहते हैं कि राजा अजातशत्रु ( कणिक ) के मर जाने पर राजकुमार उदायि (मृत्यु ४६७ ई० पू०) को चम्पा में रहना अच्छा न लगा | उसने अपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034773
Book TitleBharat ke Prachin Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherJain Sanskriti Sanshodhan Mandal
Publication Year1952
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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