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महावीरका समय नहीं। इसके सिवाय, अनंद-विक्रम संवत्की जिस कल्पनाको आपने अपनाया है वह कल्पनाही निर्मूल है-अनन्दविक्रम नामका कोई संवत् कभी प्रचलित नहीं हुआ और न चन्दवरदाईके नामसे प्रसिद्ध होने वाले 'पृथ्वीराजरासे में ही उसका उल्लेख है-और इस बातको जाननेके लिये रायबहादुर पं० गौरीशंकर हीराचन्दजी
ओमाको 'अनन्द-विक्रम संवत्की कल्पना' नामका वह लेख पर्याप्त है जो नागरी प्रचारिणी पत्रिकाके प्रथम भागमें, पृ० ३७७ से ४५४ तक मुद्रित हुआ है। ___ अंब मैं एक बात यहाँ पर और भी बतला देना चाहता हूँ
और वह यह कि बद्धदेव भगवान महावीरके समकालीनथे । कुछ विद्वानोंने बौद्धग्रंथ मज्झिमनिकायके उपालिसुत्त और सामगामसुत्तकी संयुक्त घटना को लेकर, जो बहुत कुछ अप्राकृतिक देषमूलक एवं कल्पित जान पड़ती है और महावीर भगवानके साथ जिसका संबंध ठीक नहीं बैठता, यह प्रतिपादन किया है कि महावीरका निर्वाण बुद्धके निर्वाणसे पहले हुआ है । परन्तु वस्तुस्थिति ऐसी मालूम नहीं होती। खुद बौद्ध ग्रंथोंमें बुद्धका निर्वाण अजातशंत्र (कूणिक) के राज्याभिषेकके आठवें वर्ष बतलाया है; और दीघनिकायमें, तत्कालीन तीर्थकरोंकी मुलाकातके अवसर पर, अजातशत्रुके मंत्रीके मुखसे निगंठ नातपुत्त (महावीर) का जो परिचय दिलाया है उसमें महावीरका एक विशेषण "अद्धगतो वयो" (अर्धगतवयाः) भी दिया है, जिससे यह स्पष्ट जाना जाता है कि अजातशत्रुको दिये जाने वाले इस परिचयके समय महावीर अधेड उम्रके थे, अर्थात् उनकी अवस्था ५० वर्षके लगभग थी । यह परिचय यदि अजातशत्रुके राज्यके प्रथम वर्ष में ही दिया गया हो,
* इन सूत्रोंके हिन्दी अनुवादके लिये देखो, राहुल सांकृत्यायन-कृत 'बुढचर्या पृष्ठ ४४५, ४८१ ।
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