________________
४८ भगवान महावीर और उनका समय दिया है । परंतु मामला बहुत कुछ स्पष्ट जान पड़ता है। हेमचंद्रने ६० वर्षकी यह कमी नन्दोंके राज्यकालमें की है--उनका राज्यकाल ९५ वर्षका बतलाया है--क्योंकि नन्दोंसे पहिले उनके और वीरनिर्वाणके बीचमें ६० वर्षका समय कूणिक आदि राजाओंका उन्होंने माना ही है । ऐसा मालूम होता है कि पहलेसे वीरनिर्वाणके बाद १५५ वर्षके भीतर नन्दोंका होना माना जाता था परन्तु उसका यह अभिप्राय नहीं था कि वीरनिर्वाणके ठीक बाद नन्दोंका राज्य प्रारंभ हुआ, बल्कि उनसे पहिले उदायी तथा कूणिकका राज्य भी उसमें शामिल था । परन्तु इन राज्योंकी अलग अलग वर्ष-गणना साथमें न रहने आदिके कारण बादको गलतीसे १५५ वर्षकी संख्या अकेले नन्दराज्यके लिये रूढ़ हो गई । और उधर पालक राजाके उसो निर्वाण-रात्रिको अभिषिक्त होनेकी जो महज एक दूसरे राज्य की विशिष्ट घटना थी उसके साथमें राज्यकालके ६० वर्ष जुड़कर वह गलती इधर मगधकी काल गणनामें शामिल हो गई। इस तरह दो भलोंके कारण कालगणनामें ६० वर्षकी वृद्धि हुई और उसके फलस्वरूप वोरनिर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका राज्याभिषेक माना जाने लगा। हेमचन्द्राचार्य ने इन भूलोंको मालम किया और उनका उक्त प्रकारसे दो श्लोकोंमें ही सुधार कर दिया है । बैरिष्टर काशीप्रसाद (के०पी० ) जी जायसवालने, जाल चाटियरके लेखका विरोध करते हुए, हेमचन्द्राचार्य पर जो यह
आपत्ति की है कि उन्होंने महावीरके निर्वाणके बाद तुरत ही नन्दवंशका राज्य बतला दिया है, और इस कल्पित आधार पर उनके कथनको 'भूलभरा तथा अप्रामाणिक' तक कह डाला है * उसे
* देखो, विहार और उडीसा रिसर्च सोसाइटीके जनरलका सितम्बर सन् १९१५का अङ्क तथा जैनसाहित्यसंशोधकके प्रथम खंडका ४था अंक । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com