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महावीरका समय पर कल्किका अस्तित्वसमय वीरनिर्वाणसे एक हजार वर्षके भीतर न रहकर ११०० वर्षके करीब हो जाता है और उससे एक हजार की नियत संख्यामें तथा दूसरे प्राचीन ग्रन्थोंके कथनमें भी बाधा
आती है और एक प्रकारसे सारी ही कालगणना बिगड़ जाती है * । इसी तरह पर यह भी स्पष्ट है कि हरिवंशपराण और त्रिलोकप्रज्ञप्तिके उक्त शक-काल-सूचक पद्योंमें जो क्रमशः 'अभवत' और 'संजादो' (संजातः) पदोंका प्रयोग किया गया है उनका 'हुआ-शकराजा हुआ-अर्थ शकराजाके अस्तित्वकालकी समाप्तिका सूचक है, प्रारंभसचक अथवा शकराजाको शरीरोत्पत्ति या उसके जन्मका सचक नहीं। और त्रिलोकसारकी गाथामें इन्हीं जैसा कोई क्रियापद अध्याहृत (understood) है। ___ यहाँ पर एक उदाहरण-द्वारा मैं इस विषयको और भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ। कहा जाता है और आम तौर पर लिग्वने में भी आता है कि भगवान पार्श्वनाथसे भगवान् महावीर ढाई सौ (२५०) वर्षके बाद हुए । परन्तु इस ढाई सौ वर्ष बाद होनेका क्या अर्थ ? क्या पार्श्वनाथके जन्मसे महावीरका जन्म ढाई सौ वर्ष बाद हुआ ? या पार्श्वनाथके निर्वाणसे महावीरका जन्म ढाई सौ वर्ष बाद हुआ ? अथवा पार्श्वनाथके निर्वाणसे महावीरको केवल
* हाँ, शक-संवत् यदि वास्तवमें शकराजाके राज्यारंभसे ही प्रारंभ हुआ हो तो यह कहा जा सकता है कि त्रिलोकसारको उक्त गाथामें शकके ३६४ वर्ष ७ महीने बाद जो कल्कीका होना लिखा है उसमें शक और कल्की दोनों राजाओंका राज्यकाल शामिल है। परन्तु इस कथनमें यह विषमता बनी ही रहेगी कि अमुक अमुक वर्षसंख्याके बाद शकराजा हुआ' तथा 'कल्किराजा हुआ' इन दो सदृश वाक्योंमेंसे एकमें तो राज्यकालको शामिल नहीं किया और दूसरेमें वह शामिल कर लिया गया है, जो कथन-पद्धतिके विरुद्ध है।
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