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भगवान महावीर और उनका समय
सर्वोदय तीर्थ स्वामी समन्तभद्रने भगवान महावीर और उनके शासनके सम्बन्ध
में और भी कितनं ही बहुमूल्य वाक्य कहे हैं जिनमें से एक सुन्दर वाक्य मैं यहाँ पर और उद्धृत कर देना चाहता हूँ और वह इस प्रकार है :-- सर्वान्तवत्तद्गुणमुख्यकल्पं, सर्वान्तशून्यं च मिथोऽनपेतम् । सर्वापदामन्तकरं निरन्तं, सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव ॥६१॥
-युक्तयनुशासन। इसमें भगवान महावीरके शासन अथवा उनके परमागम. लक्षण-रूप वाक्यका स्वरूप बतलाते हुए जो उसे ही संपूर्ण पापदाओंका अंत करने वाला और सबोंके अभ्युदयका कारण तथा पूर्ण अभ्युदयका--विकासका हेतु ऐसा सर्वोदय तीर्थ' बतलाया है वह बिलकुल ठीक है । महावीर भगवानका शासन अनेकान्तके प्रभावसे सकल दुर्नयों तथा मिथ्यादर्शनोंका अन्त (निरसन) करनेवाला है और ये दुर्नय तथा मिथ्यादर्शन हो संसारमें अनेक शारीरिक तथा मानसिक दुःखरूपी आपदाओंके कारण होते हैं । इस लिये जो लोग भगवान महावीरके शासनका-उनके धर्मकाआश्रय लेते हैं--उसे पूर्णतया अपनाते हैं उनके मिथ्यादर्शनादिक दूर होकर समस्त दुःख मिट जाते हैं । और वे इस धर्म के प्रसादसे अपना पर्ण अभ्यदय सिद्ध कर सकते हैं। महावीरकी ओरसे इस धर्मका द्वार सबके लिये खुला हुआ है * । नीचसे नीच कहा
* जैसा कि जैनग्रन्थोंके निन्न वाक्योंसे ध्वनित है :(१) “दीक्षायोग्यास्त्रयो वर्णाश्चतुर्थश्च विधोचितः।
मनोवाकायधर्माय मताः सर्वेऽपि जन्तवः ॥"
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