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२० भगवान महावीर और उनका समय चलती सी बात कहना इनके गौरवको घटाने अथवा इनके प्रति कुछ अन्याय करने जैसा होगा। और इसलिये इस छोटेसे निबन्ध में इनके स्वरूपादिका न लिखा जाना क्षमा किये जानेके योग्य है। इन पर तो अलग ही विस्तृत निबन्धोंके लिखे जानेकी जरूरत है। हाँ, स्वामी समन्तभद्रके निम्न वाक्यानुसार इतना जरूर बतलाना होगा कि महावीर भगवान्का शासन नय प्रमाणके द्वारा वस्तुतत्त्वको बिलकुल स्पष्ट करने वाला और संपर्ण प्रवादियोंके द्वारा अबाध्य होनेके साथ साथ दया ( अहिंसा), दम (संयम ), त्याग और समाधि (प्रशस्त ध्यान) इन चारोंकी तत्परताको लिये हुए है, और यही सब उसकी विशेषता है अथवा इसीलिये वह अद्वितीय है:दया दम-त्याग-समाधिनिष्ठं, नय-प्रमाण-प्रकृतांजसार्थम् । अधृष्यमन्यैरखिलैः प्रवार्जिन त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥६॥
-युक्त यनुशासन । : इस वाक्यमें 'दया'को सबसे पहला स्थान दिया गया है और वह ठीक ही है । जब तक दया अथवा अहिंसाकी भावना नहीं तब तक संयममें प्रवृत्ति नहीं होती, जब तक संयममें प्रवृत्ति नहीं तब तक त्याग नहीं बनता और जब तक त्याग नहीं तब तक समाधि नहीं बनती। पर्व पर्व धर्म उत्तरोत्तर धर्मका निमित्त कारण है । इसलिये धर्ममें दयाको पहला स्थान प्राप्त है । और इसीसे 'धर्मस्य मूलं दया' आदि वाक्योंके द्वारा दयाको धर्मका मूल कहा गया है। अहिंसाको 'परम धर्म' कहनेकी भी यही वजह है। और उसे परम धर्म ही नहीं किन्तु 'परम ब्रह्म' भी कहा गया है; जैसा कि स्वामी समन्तभद्रके निम्न वाक्यमे प्रकट है:"अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमं ।".
-स्वयंभूस्तोत्र।
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