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________________ भगवान् महावीर शान्त हृदय पर जैनधर्म की उज्वल और स्पष्ट मोहर लगी हुई है । वह मोहर हिंसा के विरुद्ध अहिंसा के साम्राज्य की है । आज भी ब्राह्मणधर्म जैनधर्म का इस बात के लिए अहसान मन्द है कि, उसने उसे अहिंसा का उज्वल सन्देशा दिया । ___ उस समय में तो इन दोनों क्रान्तियों को समाज पर पूर्ण विजय मिली । यज्ञों में होनेवाली हिंसा बन्द हो गई और यह बात तो अब तक भी स्थायी है । इसके अतिरिक्त अछूतों के प्रति घृणा के भाव भी समाज से मिट गये । लेकिन थोड़े ही समय के पश्चात् जब कि शंकराचार्य ने वैदिकधर्म का पुनरुद्धार किया, छूआछूत के ये भाव पुनः समाज में फैलने लगे और यहाँ तक फैले कि केवल वैदिकधर्म पर ही नहीं, पर इसका पूर्ण विरोधी जैनधर्म भी इसका कु-प्रभाव पड़ने से न बचा। वैदिकधर्म के दबाब के कारण अपने हृदय के विरुद्ध भी जैन लोगों ने इन भावों को स्वीकार किया। क्रमशः बढ़ते बढ़ते ये भाव जैनधर्म के हृदय में भी लग गये और अन्त में इस बातका जो दुष्परिणाम हुआ वह आज आँखों के सामने प्रत्यक्ष है। मतलब यह है कि, उस समय इन दोनों क्रान्तियों का तत्कालीन समाज पर बहुत ही अधिक शुभ परिणाम हुआ। वर्णाश्रमधर्म तो नष्ट हो गया पर उसके बदले समाज में एक ऐसी दिव्य शान्ति का प्रादुर्भाव हुआ कि जिसके कारण समाज को वर्णाश्रमधर्म की कमी मालूम न हुई और उस शान्ति के परिणाम स्वरूप इतिहास में हमें भविष्य की स्वर्णशतान्दियाँ देखने को मिलती हैं। अब केवल एक प्रश्न बाकी रह जाता है। आजकल कुछ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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