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________________ भगवान् महावीर बहुत ऊँची श्रेणी के महात्माओं के लिये व्यवहृत होता है । पर बौद्धधर्म में भ्रष्ट उपाश्रय के स्थापित करने वाले को 'तथ्थगत' कहा है । इसका कारण यही मालूम होता है कि, द्वेषांध होकर ही पीछे से बौद्ध लोगों ने जैनधर्म से इस शब्द को उड़ा कर इस रूप में उसका प्रयोग किया । अब लेसन साहब की दूसरी युक्ति पर विचार कीजिए "अहिंसा" के लिये तो विचार करना ही व्यर्थ है । क्योंकि यह तो हिन्दुस्तान के प्रायः सभी धर्मों में पाई जाती है । रहा कालमापन का, इसके लिए हर्मन जेकोबी का मत सुनिये। The Buddhas improved upon the Brabwaui system of yugas, while tbe jains invented their utassanpini and Avasarpini eras after the model of the day and night of Brahma. __ अर्थात् बुद्ध लोगों ने ब्राह्मणों के युगों की सिस्टम का अनुकरण करके चार बड़े बड़े कल्पों का आविष्कार किया, और जैनियों ने ब्रह्म के दिन और रात ( अहोरात्र) की कल्पना पर उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल की कल्पना की। ___ इससे लेसन साहब की तीसरी युक्ति भी निरर्थक ही जाती है। क्योंकि, जेकोबी के कथानुसार दोनों ही मतों ने कालमापन की कल्पना ब्राह्मणधर्म के अनुसार की। इसी प्रकार लेसन साहब को चौथी युक्ति भी निमूल हो जाती है । क्योंकि जिन चार महाव्रतों का उन्होंने जिक्र किया है, वे ब्राह्मण बौद्ध, और जैन तीनों धर्मों में समान पाये जाते हैं। पर समान होते हुए भी कोई बौद्धधर्म को ब्राह्मणधर्म की शाखा नहीं कह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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