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________________ पाँचवाँ अध्याय क्या जैन और बुद्ध धर्म ब्राह्मण धर्म के विरुद्ध क्रान्ति रूप उदय हुए थेःकी . ग. हम पहिले इन दोनों धर्मों को क्रान्ति संज्ञा से सम्बोधित ..करते आये हैं। सम्भव है कि कुछ लोगों को इसमें कुछ एतराज हो। क्योंकि क्रान्ति शब्द का साधारण अर्थ आज कल राजनैतिक बलवे से लिया जाता है। इसमें कुछ लोग सहज ही कह सकते हैं कि जैन और बौद्ध धर्म कोई राजनैतिक बलवे तो थे नहीं कि, जिसके कारण उन्हें "क्रान्ति" कहा जाय,इसके उत्तर-स्वरूप हम यही कह देना उचित समझते हैं कि केवल राजनैतिक बलवे को ही क्रान्ति नहीं कहते । समाज की विशृंखला और दुर्व्यवस्था को मिटाने के लिए जो आन्दोलन होते हैं, उन्हींको क्रान्ति कहते हैं। फिर चाहे वे आन्दोलन राजनैतिक रूप से हों चाहे सामाजिक रूप से हों चाहे धार्मिक रूप से । समय की आवश्यकता को देखकर तत्कालीन महापुरुष कभी राजनैतिक रूप से उस क्रान्ति का उद्गम करते हैं कभी सामाजिक रूप से और कभी धार्मिक रूप से महात्मा गांधी की क्रान्ति राजनैतिकता और धार्मिकता का मिश्रण है। स्वामी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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