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________________ भगवान् महावीर पाठक यही अनुमान बांधेगा कि, वह किसी पागल खाने से छूट कर आया होगा। परन्तु प्रत्येक बुद्धिमान मनुष्य की सामान्य बुद्धि भी यह बात स्वीकार न करेगी कि, जिस गौशाला के अनुयायियों की संख्या स्वयं हमारे शास्त्रकार महाबोर के अनुयायियों की संख्या से भी अधिक बतला रहे हैं। जिस गौशाला की सङ्गठनशक्ति की प्रशंसा कई ग्रन्थों में की गई है उस गौशाला को इतना बुद्धिहीन और विदूषक कोई बुद्धिमान स्वीकार नहीं कर सकता। जैन साहित्य के ही समकालीन बौद्ध साहित्य में भी कई स्थानों पर "गौशाला" का नाम आया है। या उस साहित्य में गौशाला को इतना मूर्ख और नष्ट ज्ञान नहीं बतलाया है। उसके द्वारा प्रचलित किया हुआ आजीविक सम्प्रदाय आज दुनियां के पर्दे से उठ गया है। और उसके धर्म शास्त्र और सिद्धान्त भी प्रायः गुम हो गये हैं। इसलिये आज उसके विषय में कोई अधिक नहीं कह सकता, पर यह निश्चय है कि बुद्ध और महावीर के काल में और उसके पश्चात अशोक के काल में यह मन एक बलवान और प्रभावशाली मत समझा जाता था, प्रोफेसर कर्न का कथन है कि खुद सम्राट अशोक ने आजीविक मत के सम्बन्ध में शिला लेख खुदवाये थे । ... बुद्ध और महावीर की तरह आजीविक मत का मुख्य सिद्धान्त भी आहिंसा ही है, इस विषय में मनोरंजन घोष नामक एक विद्वान् लिखते हैं किः The history of the. Ajivkas reveals the curious fact that sacredness of animal life was not the pecaliar tenet of Buddhism alone but the religion of Sakyamuni šbared it with the Ajivkas and the Nigrantas. They Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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