SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९ भगवान् महावीर कई उपाय किये, प्रमोद भवन बनाये । सुन्दरी यशोधरा से विवाह किया । पर कुमार सिद्धार्थ का हृदय किसी भी वस्तु पर अधिक समय के लिए आसक्त न हुआ। समाज का करुण कन्दन सनके हृदय पर दारुण चोट पहुँचा रहा था। मनुष्य जाति के दुःख से उनका हृदय दिनरात रोया करता था। वैराग्य की अग्नि उनके हृदय में दिन पर दिन अधिकाधिक प्रज्वलित होती जा रही थी । अन्त में एक दिन अवसर पाकर रात के समय अपने पिता, माता (गौतमी) पत्नी, पुत्र आदि सब परिजनों को सोता हुआ छोड़ कर बुद्धदेव घर से निकल पड़े। वे सन्यासी हुए । उन्होंने बहुत शीघ्र समाज के अत्याचारों के विरुद्ध जोर की आवाज़ उठाई । महावीर की आवाज ने समाज को पहले ही सजग कर दिया था। बुद्ध की आवाज़ ने उसका रहा सहा भ्रम भी मिटा दिया, फिर क्या था ? सारे समाज के अन्दर एक नव जीवन का संचार हो आया। मोह का परदा फट गया, मनुष्यत्व का विकास हुआ। जो लोग महावीर के झण्डे के नीचे जाने से हिचकते थे। वे भी खुशी के साथ बुद्ध के झण्डे के नीचे एकत्र होने लगे। इसका कारण यह था कि जैन-धर्म एक तो बिल्कुल नवीन नथा, वह पहले ही से चला आ रहा था, और मनुष्य प्रकृति कुछ ऐसी है कि वह नवीनता को जितना अधिक पसन्द करती है। उतनी प्राचीनता को नहीं। दूसरा कारण यह था कि भगवान महावीर ने श्रावक के नियम कुछ ऐसे कठिन रख दिये थे, कि सर्व साधारण सुगमता के साथ उनका पालन नहीं कर सकते थे। इधर बुद्ध-धर्म पूर्ण उदारता के साथ सर्व साधारण को अपने झण्डे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy