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________________ ( ४६६ ) ये सेठ मोहणोत जाति के ओसवाल थे। इनमें पहिले रेखाजी बड़े सेठ थे इनके पीछे जीवनदासजी हुए, इनके पास लाखों रुपये सैकड़ों हजारों सिके के थे। महोराज विजयसिंह जी ने उनको नगर सेठ का खिताब और एक महीने तक किसी आदमी को कैद कर रखने का अधिकार भी दिया था । जीवनदास जी के पुत्र हरजीमल जी, हरजीमल जी के रामदास जी, रामदास जी के हमीरमल जी और हमीरमल जी के पुत्र सेठ चांदमल जी हैं। जीवनदास जी के दूसरे पुत्र गोरधनदास जी के सोभागमल जी, सोभागमल जी के पुत्र धनरूप मल जी, कुचामण में थे, जिनकी गोद अब सेठ चांदमल जी के पुत्र मगनमल जी हैं । सेठ जीवणदास जी की छत्रीगांव के बाहर पूरब की तरफ पीपाड़ के रास्ते पर बहुत अच्छी बनी है। यह १६ खंभो की है, शिखर के नीचे चारों तरफ एक लेख खुदा है जिसका सारांश यह है सेठ जीवणदास मोहणोत्त के ऊपर छत्री सुत गोरधनदास हरजीमल कराई । नींव सम्वत् १८४१ फागुन सुदी १ को दिलाई कलश माह सुदी १५ संवत् १८४४ गुरुवार को चढ़ाया । कहते हैं कि एक बेर यहाँ नवाब अमीर खाँ के डेरे हुवे थे, किसी पठान ने छत्री के कलस पर गोली चलाई तो उसमें से कुछ अशरफियाँ निकल पड़ीं, इससे छत्री तोड़ी गई तो और भी माल निकला जो नवाब ने ले लिया। फिर बहुत वर्षों बाद छत्री को मरम्मत सेठ चांदमल जी के पिता या दादा ने अजमेर से आकर करा दी । इन सेठों की हवेली रीयां में है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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