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________________ भगवान् महावीर [२] श्रीयुत महामहोपाध्याय सत्य सम्प्रदायाचार्या सर्वान्तर पं० स्वामी राममिश्रजी शास्त्री भूतपूर्व प्रोफेसर संस्कृत कालेज बनारस । आपने मिती पौष शुक्ला १ सम्वत् १९६२ को काशीनगर में व्याख्यान दिया उसमें के कुछ वाक्य उद्धृत करते हैं । (१) ज्ञान, वैराग्य, शान्ति, क्षन्ति, अदम्भ, अलीर्य्या, अक्रोध, आमात्सर्य, अलोलुपता, शम, दम, अहिंसा सामदृष्टि इत्यादि गुणों में एक एक गुण ऐसा है कि जहाँ वह पाया जाय वहां पर बुद्धिमान् पूजा करने लगते हैं। तब तो जहां ये (अर्थात् जैनों में) पूर्वोक्त सब गुण निरतिशय सोम होकर विराजमान हैं उनकी पूजा न करना अथवा ऐसे गुण पूजकों की पूजा में वाधा डालना क्या इन्सानियत का कार्य है। (२) मैं आपको कहां तक कहूँ, बड़े बड़े नामी आचार्यों ने अपने ग्रन्थों में जो जैन मत खण्डन किया है वह ऐसा किया है जिसे देखसुन कर हँसी आती है। (३) स्याद्वाद का यह ( जैनधर्म) अभेद्य किला है उसके अन्दर वादी प्रतिवादियों के मायामय गोले नहीं प्रवेश कर सकते । (४) सज्जनों एक दिन वह था कि जैन सम्प्रदाय के आचार्योंकी हूँकार से दसों दिशाएं गूंज उठती थीं। (५) जैन मत तब से प्रचलित हुआ है जब से संसार या सृष्टि का प्रारम्भ हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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