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________________ भगवान् महावीर ४४२ हम अपने पूज्य तीर्थकरों की स्मृति की रक्षा कर सकें, हम उन मूर्तियों को देखकर हृदय की कलुषित वृत्तियों को निकाल सकें, और उन मूर्तियों के द्वारा हम ध्यान की पद्धति सीख कर, निर्विकार होना सीखें। इसके सिवाय मूर्ति रखने का या उसकी पूजा करने का कोई दूसरा उद्देश्य नहीं है । इन मूर्तियों के लिए लड़ना और इन्हीं को अपना सर्वस्व सिद्ध करना, अर्थात् अपने आप को जड़वादी सिद्ध करना है । इन मूर्तियों के पीछे हम अपने तीर्थकरों तक को भूल गये हैं । कहाँ तो ये तीर्थ हमारी आत्मा को पवित्र बनाने के कारण होने चाहिए थे और कहाँ ये हमारे रागद्वेष को बढ़ाने के कारण हो रहे हैं । मूर्त्तिपूजा के वास्तविक उद्देश्य को भूल हम इन्हीं जड़मूर्तियों को अपना सर्वस्व समझने लग गये हैं और इनके पीछे हम अपने लाखों सचेतन भाइयों की एवं अपनो निज की आत्मा को अशान्ति का कारण बना रहे हैं, जो कि एक भयङ्कर हिंसा है। याद रखिए, इन मूर्तियों पर कोर्ट के द्वारा अपना अधिकार साबित करवा के हम अपनी आत्मिक उन्नति नहीं कर सकते - याद रखिए इन मूर्तियों पर केशर, चन्दन, लगा कर या बिल्कुल दिगम्बर रखकर भी हम मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते - याद रखिए, जड़वादियों की तरह इन मूर्तियों को अपना सर्वस्व समझ लेने पर भी हम अपना उद्धार नहीं कर सकते और निश्चय याद रखिए कि लाखों रुपये का पानी कर अ ने तिपक्षिों को नी ॥ दिखलाने पर भी हम स जैनी नहीं जैनी नहीं सकते - हावीर के अनुयायी नहीं कहला सकत । । श्रात्मिक उन्नति करना और सजैनी कहलाना और तीर्थों के लिए कोटों में चढ़ना दूसरी बात • दूसरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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