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________________ भगवान् महावीर ४२६ है। शक्ति के अनुसार आत्मसमता को बढ़ाते हुए चलना यह बात ठीक है पर जब वह समता ही लुम होने लगती है उस समय उसको स्थिर रखने के लिए औषधि की तरह वस्त्र और पात्र की मनाई किसी भी प्राचार शास्त्र में सम्भव नहीं हो सकती। दिगम्बरों के "राजवार्तिक" तथा ज्ञानार्णव वगैरह ग्रन्थों में आदान समिति तथा पारिष्ठापानिका समिति के नाम देखने में आते हैं जिनसे सम्भवतः हमारे उपरोक्त कथन का समर्थन होता है। राज वार्तिक में एक स्थान पर कहा है "वाङ मनोगुप्ति-इर्या अथवा-निक्षेयण । समिति आलोकित पान भोजनानि पत्र ॥" अर्थात् अहिंसा रूप महाउद्यान की रक्षा करनेवाले को उसके आस पास पांच बाड़ें बांधने की है। वे इस प्रकार हैंवाणी का संयम, मन का संयम, जाने आने में सावधानता, लेने रखने में सावधानता, और खाने पीने में सावधानता । ___ उपरोक्त उल्लेख में आदान समिति में उपकरणों को लेने और रखने में सावधानी रखने की सूचना दी है। इससे चौथी समिति का सम्बन्ध निर्ग्रन्थों के उपकरणों के साथ घटाना कोई अनुचित नहीं जान पड़ता। इसमे पाठक समझ सकते हैं कि श्वेताम्बरत्व और दिगम्बरत्व की नींव केवल आग्रह के पाये पर रक्खी गई है । दोनों सम्प्रदाय के प्राचीन ग्रन्थों का मत वस्त्र पात्र के सम्बन्ध में प्रायः एक सा ही है। यदि कोई निरपेक्ष विद्वान दोनों सम्प्रदाय के प्राचीन आचार विभाग को देखें तो हमारा खयाल है कि वह शायद ही दिगम्बरी और श्वेताम्बरी आचार ग्रन्थों को पहचान सकेगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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