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________________ भगवान् महावार ४२४ कई प्रकार के परीषह सहन करना पड़ते हैं जिससे शीघ्र ही तप की प्राप्ति होती है । ( ३६१) . (३) इसलिए जिस प्रकार भगवान ने कहा है उसी प्रकार जैसे बने वैसे सब स्थानों पर समताभाव धारण करना चाहिए। ( ३६२) 'आचाराङ्ग सूत्र' के इन उल्लेखों से मालूम होता है कि समर्थ और सहन शोल मुनि बिल्कुल नग्न रहते और भगवान को बतलाई हुई समता को यथा शक्ति समझने का प्रयत्न करते थे । इस सूत्र में ऐसा यही नहीं पर और भी कई उल्लेख हैं। उसके दूसरे "वस्वैषणा" नामक भाग के एक प्रकरण में मुनियों को वस्त्र कैसे और कब लेना चाहिए इस विषय का क्रमवद्ध उल्लेख किया है इसके अतिरिक्त इस सूत्र में वस्त्र रखने का कारण बतलाते हुए लिखा है कि "जो साधु वस्त्ररहित हो और उसे यह मालूम होता हो कि मैं घास तथा कांटों का उपसर्ग सहन कर सकता हूँ, डांस और मच्छरों के परोषद को भो भुगत सकता हूँ पर लज्जा को नहीं जोत सकता तो उसे एक कटिवस्त्र धारण करलेना चाहिए।" (४३३) ____ 'यदि वह लज्जा को जीत सकता हो तो उसे अचेल (नग्न) हो रहना चाहिए। अचेल अवस्था में रहते हुए यदि उसपर डांस, मच्छर, शीत, उष्ण आदि के उपद्रव हों तो शान्ति और समतापूर्वक उसे सहन करना गहिए। ऐसा करने से अनुपाधिपन शीघ्र ही प्राप्त होता है और तप भी प्राप्त होता है। इसलिए जैसा भगवान ने कहा है उसको समझ कर जैसे बने वैसे समभाव जानते रहना" (४३४) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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