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________________ ४२१ भगवान् महावीर योजना की गई है। इस कृत्रिम सत्य में समय के अनुसारसमाज के अनुसार और परिस्थिति के अनुसार अनेक इष्ट और अनिष्ट परिवर्तन होतेरहते हैं । परन्तु जब इन परिवर्तनों के समझने में उपदेशक और उपासक भूल करते हैं-आग्रह करते है और अपना आधिपत्य चलाने के लिये परिस्थिति को भी अवहेलना कर डालते हैं तब उन इष्ट परिवर्तनों में अनिष्ट का प्रवेश हो जाता है और फिर भविष्य की संतानें इन अनिष्ट परिवर्तनों को और भी पुष्ट करती हैं। वह उनको शास्त्र के अन्दर मिला कर अथवा अपने बड़ों का नाम देकर उन्हें और भी मजबूत करने की कोशिश करती हैं । जब समाज बहुत समय तक इसी अनिष्ट परिवर्तन को स्वीकार कर चलता रहता है तो भविष्य में जाकर यही परिवर्तन उसके धर्म सिद्धान्त और कर्तव्य के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इसका फल यह होता है कि समाज में शांति की जगह क्लेश-उत्साह की जगह प्रमाद-अमीरी की जगह गरीबी और आजादी को जगह गुलामी का आविर्भाव हो जाता है। __इसी प्रकार का परिवर्तन हमारे जैन-साहित्य में हुआ है और बड़े ही भीषण रूप में हुआ है । इसका सब से भयङ्कर परिणाम यह हुआ है कि जैन समाज में श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकवासी आदि अनेक मतमतान्तर जारी हो गये ये मत आपस में ही एक दूसरे के साथ लड़कर समाज की शक्ति, स्वतंत्रता और सम्पत्ति का नाश कर रहे हैं। हम दावे के साथ इस बात को निर्भीकता-पूर्वक कह सकते हैं कि इन मतमतान्तरों का असली जैन-धर्म के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। लोगों ने स्वार्थShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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