SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 411
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०५ भगवान् महावीर इसी कसौटी पर हम जैन धर्म को भी जाँचना चाहते हैं । जैन धर्म के अन्तर्गत प्रत्येक गृहस्थ के लिये अहिंसा, सत्य, आचार्य, ब्रह्मचर्य, और परिग्रह परिमाण इन पाँच अणुव्रतों की योजना की गई है, अणुत्रत अर्थात् स्थूल व्रत जैनाचार्य इस बात को भली प्रकार जानते थे कि साधारण मनुष्य प्रकृति इन बातों का सूक्ष्म रूप से पालन करने में असमर्थ होगी और इसीलिये उन्होंने इनके स्थूल स्वरूप का पालन करने ही की आज्ञा गृहस्थों को दी है । हां, यह अवश्य है कि सांसारिकपन में गृहस्थ इनका धीरे धीरे विकास करता रहे और जब वह सन्यस्ताश्रम में प्रविष्ट हो जाय तब इनका सूक्ष्म रूप से पालन करे, उस समय मनुष्य संसार से सम्बन्ध न होने के कारण कुछ मानवातीत (Super human) भी हो जाता है, और इस प्रकार के वृत्तों से वह अपनो आत्मिक उन्नति कर सकता है। यदि जैन-धर्म के कथनानुसार समाज में समष्टि रूप से इन पाँच वृतों का स्थूल रूप से पालन होने लगे, यदि प्रत्येक मनुष्य अहिंसा के सौन्दर्य को, सत्य के पावित्र्य को, ब्रह्मचर्य के तेज को और सादगी के महत्व को समझने लग जाय तो फिर दावे के माथ यह बात कहने में कोई आपत्ति नहीं रह जाती कि समाज में स्थायी शान्ति का उद्रेक हो सकता है। ___जगन् के अन्तर्गत अशान्ति और कलह के जितने भी दृश्य दृष्टि गोचर होते रहते हैं । प्रायः वे सब इन्हीं पाँच वृतों की कमी के कारण होते हैं । अहिंसक प्रवृत्ति के अभाव ही के कारण संसार में हत्या के, क्रूरता के पाशविकता के दृश्य देखे जाते हैं, सत्य को कमी ही के कारण धोखेबाजी और बेइमानी एवं बन्धुShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy