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________________ भगवान महावीर ३९६ अन्तःकरण में यह कल्पना हो रही है कि यह मत बहुत भूल से भरा हुआ है। कुछ दिनों पूर्व लोगों का प्रायः यह मत था कि गौतमबुद्ध से कुछ ही समय पूर्व महावीर हुए और उन्होंने जैन धर्म की स्थापना की, पर अब यह मन्तव्य असत्य सिद्ध हो चुका है और लोग महावीर के पूर्ववर्ती तीर्थकर पार्श्वनाथ को जैन. धर्म का मूल संस्थापक मानने लगे हैं, पर जैनियों का परम्परा, गत मत इनसे भी भिन्न प्रकार का है। उनके मतानुसार जैन-धर्म अनादि सनातन धर्म है । जैनियों का यह परम्परागत मत उपेक्षा के योग्य नहीं है । मेरा तो यह विश्वास है कि भारत के प्रत्येक साम्प्रदायिक मत को ऐतिहासिक आधार अवश्य है। जैन-धर्म के इस कथन को कौनसा ऐतिहासिक आधार है, यह कह देना बहुत ही कठिन है। इस विषय की शोध करना मैंने हाल ही में प्रारम्भ की है, तथापि हर्मन जेकोबी के निबन्ध में जो एक विधान दृष्टि गोचर होता है, उससे प्रस्तुत विषय पर गवेषणा की जा सकती है । उस निबन्ध से मालूम होता है कि जैन-धर्म ने अपने कितने एक मन्तव्य "जीव देवात्मक" धर्म में से ग्रहण किये होंगे । जैनियों का यह सिद्धान्त कि प्रत्येक प्राणी ही नहींकिन्तु वनस्पति और खनिज पदार्थ तक जीवात्मक हैं, हमारे उपरोक्त मन्तव्य की पुष्टि करता है। - इससे सिद्ध होता है कि जैन-धर्म अति प्राचीन धर्म है। आर्य सभ्यता के प्रारम्भ ही से इसका भी प्रारम्भ है । मेरे इस विचार को मैं बहुत ही शीघ्र शास्त्रीय दृष्टि से सिद्ध करने बाला हूँ। जैनों के निर्ग्रन्थों का उल्लेख आज भी प्राचीन वेदों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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