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________________ .३८९ भगवान महावीर भवार्थ-दिन के आठवें भाग को-जब कि दिवाकर मन्द हो जाता है-(रात होने के दो घड़ी पहले के समय को) 'नक्त' कहते हैं। 'नक्त'-'नक्तत्रत' का अर्थ रात्रि भोजन नहीं है-हेगणाधिप ! बुद्धिमान लोग उस समय को 'नक्त' बताते हैं, जिस समय एक मुहूत्ते दो घड़ी दिन अवशेष रह जाता है। मैं नक्षत्र दर्शन के समय को नक्त नहीं मानता हूँ, और भी कहा है कि: "अम्भोदपटलच्छन्ने नाश्रन्ति रवि मण्डले । अस्तंगतेतु भुञ्जाना महो! भानो सुमेवकाः ॥ ये रात्री सर्वदाऽऽहारं वर्जयन्ति सुमेधसः । तेषां पक्षोपवासस्य फलं मासेन जायते ॥ मृतेस्वजन मात्रेऽपि सूतकं जायते किल । अस्तंगते दिवानाथे भोजनं क्रियते कथम् ॥१॥" भावार्थ-यह बात कैसे आश्चर्य की है कि-सूर्यभक्त जब सूर्य, मेघों से ढक जाता है, तब तो वे भोजन का त्याग कर देते हैं, परन्तु वही सूर्य जब अस्त दशा को प्राप्त होता है तब वे भोजन करते हैं । जो रात में भोजन नहीं करते हैं वे एक महीने में एक पक्ष के उपवासों का फल पाते हैं क्योंकि रात्रि के चार पहर वे सदैव अनाहार रहते हैं । स्वजन मात्र के (अपने कुटुम्ब में से किसी के) मर जाने पर भी जब लोग सूतक पालते हैं, यानी उस दशा में अनाहार रहते हैं, तब दिवानाथ सूर्य के अस्त होने बाद तो भोजन किया ही कैसे जा सकता है। और भी कहा है:"देवैस्तु भुक्तं पूर्वाह्ने मध्याहे ऋषिभिस्तया अपराहे च पितृभिः सायाहे दैत्य दानवैः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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