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________________ ३८७ भगवान् महावीर •एल. श्रा जाता है तो मनुष्य मर जाता है। अकाल ही में काल का भोजन बन जाता है। शाम को । ( सूर्यास्त के पहले ) किया हुआ भोजन जठराग्नि की ज्वाला पर चढ़ जाता है-पच जाता है, इसलिये निद्रा पर उसका असर नहीं होता है । मगर इससे विपरीत करने से रात को खा कर थोड़ी ही देर में सो जाने से, चलना फिरना नहीं होता इसलिये पेट में तत्काल का भरा हुआ अन्न, कई बार गंभीर रोग उत्पन्न कर देता है। डाक्टरी नियम है कि भोजन करने के बाद थोड़ा थोड़ा जल पीना चाहिये, यह नियम रात में भोजन करने से नहीं पाला जा सकता है। क्योंकि इसके लिये अवकाश ही नहीं मिलता है इसका परिणाम 'अजीर्ण' होता है। अजीर्ण सब रोगों का घर होता है, यह बात हर एक जानता है। प्राचीन लोग भी पुकार पुकार कर कहते हैं"अजीर्ण प्रसवा रोगाः ।" इस प्रकार हिंसा की बात को छोड़ कर आरोग्य का विचार करने पर भी सिद्ध होता है कि रात में भोजन करना अनुचित है। यहां हम थोड़ा सा यह भी बता देना चाहते हैं कि इस विषय में धर्मशास्त्र क्या कहते हैं ? हिन्दूधर्मशास्त्रों में 'मार्कण्डेय' मुनि प्रख्यात हैं। वे कहते हैं कि__ "भस्तं गते दिवानाथे 'आपो रुधिर मुच्यते । अन्नं मासं समं प्रोक्तं मार्कण्डेन महर्षिणा ।" भावार्थ-मार्कण्ड ऋषि कहते हैं कि सूर्य के अस्त हो जाने पर जल पीना मानो रुधिर पीना है, और अन्न खाना मानो मांस खाना है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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