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________________ ३८१ भगवान् महावीर देश, जाति एवं गष्ट्र की रक्षा करने के लिये उसे हिंसा करना अनिवार्य होता है और जैन-शास्त्रों में इस प्रकार की हिंसा . की मनाई भी नहीं है । लालालाजपराय तथा अन्य विद्वानों का यह कथन बिल्कुल भ्रम मूलक है कि जैन-अहिंसा मनुष्य के पुरुषत्व को नष्ट कर कायर बना देती है। जैन-अहिंसा का पालन और अध्ययन करते समय यह खयाल में रखना चाहिये कि जैन-धर्म का दया सम्बन्धी उपदेश दुनिया को कायर बनाने वाला नहीं है बल्कि विवेक मार्ग को सिखानेवाला है। व्यर्थ को लड़ाई करने से, अथवा टण्टा खड़ा करने से मानवीय शक्ति का दुरुपयोग होता है, देश बर्बाद होता है, जाति नष्ट होती है और तामसिक वृत्ति की अभिवृद्धि होकर मनुष्य क्रूर बन जाता है। देश को रक्षा के लिए सात्विक शौर्य दिखाने की, युद्ध करने की और क्रूर लोगों के हाथ से प्रजा को बचाने की जैन-धर्म में आज्ञा है। इतिहास और प्राचीन जैन शास्त्र इस बात के प्रमाण हैं। जैन-धर्म गृहस्थों को गृहस्थ के मुताबिक चलने की आज्ञा देता है । उसका कथन तो सिर्फ इतना ही है कि अपने स्वार्थ के लिए अपने से निरपराध दुर्बल प्राणी को व्यर्थ मत सताओ । इस बात का अनुमोदन कोई भी धर्मशास्त्र नहीं कर सकता कि निरपराध को सताना अच्छा है। योग्यत्तानुसार अपराधी को दण्ड देने की योजना करना किसी धर्मशास्त्र में निषिद्ध नहीं है। जो व्यक्ति मनस्तत्व के सिद्धान्तों को नहीं जानता है, वह धर्म के तत्वों को भा नहीं समझ सकता है और इसीलिए उसके जोवन को दशा बहुत अनवस्थित हो जाती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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