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________________ भगवान् महावीर •गया . उपशान्त मोह-पूर्व गुण स्थानों में मोह का उपशम करते करते जब आत्मा पूर्णतया मोह को दबा देती हैमोह का उपशम कर देती है, तब उसको यह गुणस्थान प्राप्त होता है। क्षीणमोह-पूर्व गुण स्थानों में जिसने मोहनीय कर्म का क्षय करना प्रारंभ किया होता है, वह जब पूर्णतया मोह को क्षीण कर देता है, उसको यह गुणस्थान प्राप्त होता है । ___ यहाँ उपशम और क्षय के भेद को भी समझा देना आवश्यक है । मोह का सर्वथा उपशम हो जाने पर भी वह पुनः प्रादुर्भूत हुए बिना नहीं रहता है। जैसे किसी पानी के बर्तन में मिट्टी के नीचे जम जाने पर उसका पानी स्वच्छ दिखाई देता है परन्तु उस पानी में किसी प्रकार की हलन चलन होते ही मिट्टी ऊपर उठ आती है और वह पानी गदला हो जाता है। इसी तरह जब मोह के रजकण-मोह के पुंज-आत्म प्रदेशों में स्थिर हो जाते हैं तब आत्म प्रदेश स्वच्छ से दिखाई देते हैं, परन्तु वे उपशान्त मोह के रज-कण किसी कारण को पाकर फिर से उदय में आ जाते हैं, और उनके उदय में आने से जिस तरह आत्मा गुणश्रेणियों में चढ़ा होता है, उसी तरह वापिस गिरता है। इससे स्पष्ट है कि केवल ज्ञान मोह के सर्वथा क्षय होने ही से प्राप्त होता है, क्योंकि मोह का क्षय हो जाने पर पुनः वह प्रादुर्भूत नहीं होता है। . केवल ज्ञान के होते ही: 'सयोग केवली' गुणस्थान-प्रारम्भ होता है, इस गुणस्थान के नाम में जो "सयोग" शब्द रखा गया है, उसका अर्थ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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