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________________ भगवान् महावीर ३४२ इन सब शङ्काओं का समाधान करने के पूर्व हमें द्रव्य की गुण और पर्याय पर विचार करना पड़ेगा । जो वस्तु गुण और पर्याय से युक्त होती है उसे द्रव्य कहते हैं, द्रव्य अनादि, अकृत्रिम और अनन्त है। वे अनादि काल से चले आते हैं,न उनकी कभी उत्पत्ति हुई न कभी नाश होगा। हां, उनकी पर्याय में हमेशा परिवर्तन होता रहता है। कोई भी नवीन द्रव्य जिसका कि पहिले अस्तित्व न था, कभी अस्तित्व में नहीं आ सकता। अतः द्रव्यादि से युक्त इस सृष्टि का कर्ता परमेश्वर को मानना महज भल है। जैन-शास्त्रों में द्रव्य दो प्रकार के बतलाए गये हैं (१) चेतन अथवा जीव और(२) जड़ अथवा अजीव । अजीव द्रव्य के पांच प्रकार हैं-पुद्गल ( Matter ) धर्म (Medium of Motion) अधर्म ( Medium of Rest ) काल (Time) आकाश (Space) इनमें से पुगल मूर्तिक और शेष अमूर्तिक हैं । जीव और पुद्गल इन दोनों द्रव्यों के अन्तर्गत वैभाविकी शक्ति" नामक एक विशेष गुण होता है। इस के कारण इन दोनों में एक प्रकार का अशुद्ध परिणमन होता है इसी परिणमन को बन्धन कहते हैं। इतने विवेचन से हमारे पहले दो प्रश्नों का हल हो गया अर्थात् हमें यह मालूम हो गया कि जीव बन्धन में है और वह बन्धन पुद्गल परमाणुओं का है। इसी बन्धन से छुटकारा पाने ही का नाम मोक्ष है। ___ अब इस बात का विचार करना है कि यह बन्धन किस प्रकार होता है और किन उपायों से उससे जीव स्वतंत्र होता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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