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भगवान्.महावार होती है । प्रत्येक शरीर में आत्मा भिन्न भिन्न, ही है; तथापि सब
आत्माओं में रही हुई समान जाति की अपेक्षा से कहा जाता है कि-"सब शरीरों में आत्मा एक है।"
व्यवहारयह नय वस्तुओं में रही हुई समानता की उपेक्षा करके, विशेषता की ओर लक्ष खींचता है इस नय की प्रवृति लोक व्यवहार की तरफ़ है । पाँच वर्म वाले भँवरे को 'काला भंवर' बताना इस नय की पद्धति है। 'रस्ता आता है' कुंडा झरता है, इन सब उपचारों का इस नय में समावेश हो जाता है। ___ऋजु सूत्र-वस्तु में होते हुए नवीन नवोन रूपान्तरों की
ओर यह लक्ष्य आकर्षित करता है। स्वर्ण का मुकुट, कुण्डल आदि जो पर्यायें हैं, उन पर्यायों को यह नय देखता है। पर्यायों के अलावा स्थायो द्रव्य की ओर यह नय दृगपात नहीं करता है। इसीलिये पर्यायें विनश्वर होने से सदा स्थायी द्रव्य इस नप की दृष्टि में कोई चीज नहीं है।
शब्द-इस नय का काम है अनेक पर्याय शब्दों का एक अर्थ मानना । यह नय बताता है कि, कपड़ा, वस्त्र, वसन आदि शब्दों का अर्थ एक ही है।
समभिरूढ़-इस नय की पद्धति है कि पर्याय शब्दों के भेद से अर्थ का भेद मानना । यह नय कहता है कि कुंभ, कलश, घर आदि शब्द भिन्न अर्थ वाले हैं, क्योंकि कुंभ, कलश, घट आदि शब्द यदि भिन्न अर्थ वाले न हों तो घट, पट, अश्व आदि शब्द भी भिन्न अर्थ वाले न होने चाहिये । इसलिए शब्द के भेद से अर्थ का भेद है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com