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________________ भगवान् महावीर ३२२ हो जाती हैं । वस्तु में उत्पत्ति, स्थिति और विनाश ये तीन गुण स्वभावतया हो रहते हैं। कोई भी वस्तु जब नष्ट हो जाती है तो इससे यह न समझना चाहिये कि उसके मूल तत्व ही नष्ट हो गये। उत्पत्ति और विनाश तो उसके स्थूल रूप का होता है। सूक्ष्म परमाणु तो हमेशा स्थित रहते हैं, वे सूक्ष्म परमाणु दूसरो वस्तु के साथ मिलकर नवीन रूपों का प्रादुर्भाव करते रहते हैं । सूर्य की किरणों से पानी सूख जाता है पर इससे यह समझ लेना मूर्खता है कि पानी का अभाव हो गया है। पानी चाहे किसी रूप में क्यों न हो, बराबर स्थित है। यह हो सकता है, उसका वह सूक्ष्म रूप हमें दिखाई न दे पर यह तो कभी सम्भव नहीं कि उसका अभाव हो जाय । यह सिद्धान्त अटल है कि न तो कोई मूल वस्तु नष्ट ही होती है और न नवीन ही उत्पन्न होती है। इन मूल तत्वों में जो अनेक प्रकार के परिवर्तन होते रहते हैं वह विनाश और उत्पाद हैं। इससे सारे पदार्थ उत्पत्ति, स्थिति और विनाश इन तीन गुणों वाले सिद्ध होते हैं । आधुनिक पदार्थ-विज्ञान का भी यही मत है वह कहता है कि "मूल प्रकृति ध्रुव स्थिर है और उससे उत्पन्न होने वाले पदार्थ उसके रूपान्तर-परिणामान्तर मात्र हैं।" इस प्रकार उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के जैन-सिद्धान्त का विज्ञान भी पूर्ण समर्थन करता है। इन तीनों गुणों में से जो मूल वस्तु सदा स्थित रहती है उसे जैन-शास्त्र द्रव्य कहते हैं, एवं जिसकी उत्पत्ति और नाश होता है उसको पर्याय कहते हैं। द्रव्य की अपेक्षा से प्रत्येक पदार्थ नित्य हैं और पर्याय से अनित्य हैं। इस प्रकार प्रत्येक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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