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________________ भगवान् महावीर से बहुत ऊपर उठ गये हैं। महावीर भली प्रकार इस बात को जानते थे कि साधारण मनुष्यजाति इस उज्वल रूप को ग्रहण करने में असमर्थ है, वह इस आदर्श को अमल में ला नहीं सकती और इसीलिए उन्होंने साधारण गृहस्थों के लिए उसका उतना ही अंश रक्खा जिसका वे स्वभावतयः ही पालन करसके और वहां से क्रमशः अपनी उन्नति करते हुए अपने मंजिले मकसूद पर पहुँच जायं । किस सीमा तक मनुष्य अपनो हिंसक-प्रवृत्ति पर अधिकार रख सकता है और उस सीमा से अधिक कन्ट्रोल अनधिकार अवस्था में रखने से किस प्रकार उसका नैतिक अध:पात हो जाता है एवं किस सीमा पर जाकर उसकी यह हिंसक प्रवृत्ति क्रूर रूप धारण कर लेती है और उसपर कैसे संयम किया जा सकता है आदि सब बातों का समाधान जैन अहिंसा का सूक्ष्म अध्ययन करने से हो सकता है । यह विषय ऐसा गहन है कि संक्षिप्त में इसको बतलाना असम्भव है। हमारा मतलब केवल इतना ही है कि महापीर की जैन-अहिंसा मनोविज्ञान की कसौटी पर भी बिल्कुल खरी उतरती है । जो जिज्ञासु तुलनात्मक ढङ्ग से इसका विस्तृत अध्ययन करना चाहें उन्हें आधुनिक महात्माओं की अहिंसा और जैन-अहिंसा का सूक्ष्म दृष्टि से अवश्य अध्ययन करना चाहिए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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