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________________ २९७ भगवान महावीर समष्टि दोनों की घातक है। अतः सिद्ध हुआ कि "अहिंसा ही वह मूल तत्व है, जहां से शान्ति, शक्ति, स्वाधीनता, क्षमा, पवित्रता, और सहिष्णुता की धाराएँ शतधा और सहस्रथा होकर बहती रहती हैं । जब तक मनुष्य के हृदय में अहिंसा का उज्वल प्रकाश रहता है, तब तक उसके हृदय में वैर विरोध की भावनाएं प्रविष्ट नहीं हो सकती और जब तक बैर बिरोध की भावनाओं का समावेश नहीं हो जाता तब तक संगठन-शक्ति में किसी प्रकार की विशृंखला उत्पन्न नहीं हो सकती। एवं प्रायः निश्चय ही है संगठन-शक्ति से युक्त जातियां बाहरी आपत्तियों से रक्षित रहती हैं। अहिंसा का अर्थ"हिंसा शब्द हननार्थक "हिंसी" धातु पर से बना है। इससे हिंसा का अर्थ "किसी प्राणी को मारना या सताना" होता है। भारतीय ऋषियों ने हिंसा शब्द की स्पष्ट व्याख्या इस प्रकार की है___ "प्राण वियोग-प्रयोजन व्यापार" अथवा "प्राणी दुख साधन व्यापारो हिंसा।" अर्थात् प्राणी को प्राण से रहित करने के निमित्त, अथा प्राणी को किसी प्रकार का दुःख देने के निमित्त जो प्रयत्न किया जाता है उसे हिंसा कहते हैं। इसके विपरीत किसी भी जीव को दुःख या कष्ट नहीं पहुँचाना इसी को "अहिंसा" कहते हैं। पातञ्जलि कृत योग के भाष्यकार अहिंसा का लक्षण लिखते हुए कहते हैं "सर्वथा सर्वदा सर्वभूतानामनार्थ द्रोह अहिंसा" अर्थात् सब प्रकार से, सब समयों में, सब प्राणियों के साथ मैत्री भाव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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