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________________ भगवान् महावीर २९४ अशोक अहिंसा-धर्म के सब से बड़े उपासक और प्रचारक थे। पर उनके काल में भारत कभी पराधीन नहीं हुआ। उस समय यहाँ की प्रजा में जो वीर्य्य, शान्ति और साहस था, वह आज कल की दुनिया में कहीं नसीब नहीं हो सकता। दक्षिण भारत के पल्लव और चालुक्य वंश के प्रतापी राजा अहिंसा-धर्म के अनुयायी थे, पर इनके राज्य-काल में किसी भी विदेशी ने आकर भारत को सताने का साहस नहीं किया। इतिहास खुले खुले शब्दों में कह रहा है कि भारतवर्ष के लिये अहिंसा-प्रधान युग ही स्वर्णयुग रहा है। जब तक यहां पर बौद्ध और जैनधर्म का जोर रहा, जबतक ये धर्म राष्ट्रीयधर्म की तरह भारत में प्रचलित रहे तब तक भारतवर्ष में स्वतंत्रता, शान्ति और सम्पत्ति यथेष्ट-रूप में विद्यमान थी। अहिंसाधर्म के श्रेष्ठ उपासक उपरोक्त नृपतियों ने अहिंसाधर्म का पालन करते हुए भी अनेक युद्ध किये और अनेक शत्रुओं को पराजित किया था। जिन लोगों को गुजरात और राजपूताने के इतिहास का कुछ भी ज्ञान है, वे इस बात को भली प्रकार जानते हैं कि इन देशों को स्वतंत्र, समुन्नत और सुखी रखने के निमित्त जैनियों ने कितने बड़े बड़े पराक्रम-युक्त कार्य किये थे। गुजरात के सारे इतिहास में वही भाग सब से अधिक चमक रहा है जिसमें जैन राजाओं के शासन का वर्णन है। उस समय गुजरात का ऐश्वर्या चरम सीमा पर पहुँच चुका था। वहाँ के सिंहासन का तेज दिगदिगन्त में व्याप्त था, गुजरात के इतिहास में दण्डनायक विमल शाह, मंत्री मुजाल, मंत्री शान्तु, महामात्य उद्दयन और वाहड़, वस्तुपाल और तेजपाल, आभु और जगडू इत्यादि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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