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भगवान् महावीर पर न्याय विशारद न्यायाचार्य जैनमुनि श्री न्यायविजयजी
की सम्मति 'जिन'का चरित्र अभी तक किसी भी लोक-भाषा में पूर्णतया (सांगोपांग) प्रकाशित नहीं हुआ है उन महावीर देव के जीवन के लिखने के लिए लेखक को शतशः साधुवाद । यह शुभ अध्यवसाय और शुभ प्रयत्न सर्वथा अनुमोदनीय है । इसके लिखने में लेखक ने अनेकानेक ग्रन्थों के आधार पर गवेषणापूर्ण दृष्टि से जो काम लिया है वह इस पुस्तक की प्रशंसनीय विशेषता है । ऐतिहासिक दृष्टि और वैज्ञानिक पद्धति का अनुसरण तो-इसके अंदर-यथा संभव भादि से अन्त तक है ही किन्तु कहीं कहीं विचार-स्वातन्त्र्य का उपयोग भी दीख पड़ता है; परन्तु इस समय के लिये वह तो दूषणरूप न होकर भूषणरूप है, और प्रज्ञावान् के लिये वह अनिवार्य भी। हाँ, केवल कल्पनासम्भूततर्क के आधार पर मताग्रही हो जाना, निःसन्देह, हृदय की अनुदार वृत्ति है । वर्तमान नयी रोशनी के कई लेखकों के अंदर ऐसी वृत्ति पाई जाती है । प्रस्तुत पुस्तक में भी कहीं यह बात पाई जाय तो कोई आश्चर्य नहीं । त्रुटियों का होना प्रायः हर एक कार्य में साहजिक है।
पुस्तक बड़े काम की है । महावीर-जीवन की ऐसा पुस्तक यह पहले ही नजर आती है। जैन के सभी फिरके वालों को अपनाने के योग्य है । और आशा है कि-महावीर-देव के जीवन-चित्रण के लिए ऐसे-छोटे बड़े प्रयत्न अधिकाधिक अध्यवसाय पूर्वक जारी रहने पर एक दिन वह आ सकेगा कि महावीर जीवन का सम्पूर्ण व्यवस्थित महाभारत दुनिया के सन्मुख रक्खा जायगा।
इन्दौर अश्विनकृष्णा १ रवि०
मुनि न्यायविजय वि० धर्म-संवत् ३)
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