SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९१ भगवान् महावीर परन्तु जैन अहिंसा का वास्तविक रूप यह नहीं है जो आधुनिक जैन समाज में प्रचलित है । यह तो उसका बहुत ही विकृत रूप है। समाज में जब दैवी सम्पद् का ह्रास और आसुरी सम्पद् का आधिक्य होने लगता है तो प्रायः सभी उत्कृष्ट तत्वों के ऐसे ही विकृत रूप हो जाते हैं। आसुरी सम्पद् का आधिक्य भारतीय समाज में हो जाने के कारण ही क्या अहिंसा और क्या अन्य तत्व सभी के विकृत रूप हो गये हैं। ये रूप इतने भयङ्कर हो गये हैं कि उन्हें स्पर्श करने तक का साहस भी नहीं होता। __जैन अहिंसा के इस विकृत रूप को छोड़ कर यदि हम उसके शुद्ध और असली रूप को देखें तो ऊपर के सब आक्षेपों का निराकरण हो जाता है। इस स्थान पर हम उन चन्द आक्षेपों के निराकरण करने की चेष्टा करते हैं जो आधुनिक विद्वानों के द्वारा जैन अहिंसा पर लगाये जाते हैं । इस निराकरण से हम समझते हैं कि आक्षेपों की निवृत्ति के साथ साथ जैन अहिंसा का संक्षिप्त स्वरूप भी समझ में आ जायगा । * जैन अहिंसा पर सब से पहला आक्षेप यह किया जाता है कि जैनधर्म के प्रवर्तकों ने अहिंसा की मर्यादा को इतनी सूक्ष्म कोटि पर पहुँचा दी है कि जहाँ पर जाकर वह करीब करीब अव्यवहार्य हो गई है । जैन अहिंसा का जो कोई पूर्ण रूपेण पालन करना चाहे, उसको जीवन की तमाम क्रियाओं को बन्द • यह लेख मुनि जिनविजय जी द्वारा लिखित "जैनधर्म नु अहिंसा तत्व नामक लेख के आधार पर लिखा गया है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy