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________________ २६९ भगवान् महावीर ___"कालसौकरिक" ने कहा-इस काम में क्या दोष है ? जिससे अनेक मनुष्यों के जीवन की रक्षा होती हैं, ऐसे कसाई के धन्धे को मैं कदापि नहीं छोड़ सकता । “यह सुन करके क्रोधित हो राजा ने कहाः-देखें तू अब किस प्रकार यह धन्धा कर लेता है ? यह कह कर श्रेणिक ने उसे अन्धेरे कूप में कैद कर दिया ।" तत्पश्चात् वीर प्रभु के पास आकर उसने कहा-- श्रेणिक-भगवन् मैंने “कालसौकरिक" से एक दिन और रात्रि के लिये कसाई का काम छुड़वा दिया है ।" यह सुन कर प्रभु ने कहा प्रभु-हे राजन् ! उसने उस अन्ध कूप में भी पांच सौ भैंसे मिट्टी के बना बना कर मारे है।" उसी समय श्रेणिक राजा ने वहां जाकर देखा तो सचमुच उसे वही दृश्य दिखलाई दिया । उससे उसे बड़ा अनुताप हुआ और वह अपने पूर्व उपार्जित कर्मों को धिक्कारने लगा।” श्रीवीर प्रभु वहाँ से विहार कर पृष्ट चम्पा नगरी को पधारे । वहाँ के राजा "साल" और उनके लघु भ्राता "महासाल" प्रभु की वन्दना करने के निमित्त वहां आये । प्रभु की देशना सुन कर उन्हें संसार से वैराग्य हो आया। इससे उन्होंने अपनी बहन यशोमती के पुत्र “गागली" को राज्य का भार दे दीक्षा ग्रहण करली। कुछ दिनों पश्चात् वीर प्रभु को आज्ञा ले साल और महा-साल के साथ गौतम स्वामी पुनः पृष्ठ चम्पा को गये । वहां के राजा गागली ने उनकी देशना सुन कर, अपने पुत्र को राज्य गद्दी दे दीक्षा ग्रहण कर ली। गौतम स्वामी तब वहाँ से चलकर वीर प्रभु के पास आने लगे, मार्ग ही में शुभ भावनाओं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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