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________________ २६५ भगवान् महावीर ___ अनुक्रम से विहार करते करते प्रभु "पोतनपुर" पधारे । उस नगर के समीपवर्ती मनोरम नामक उद्यान में देवताओं ने समवशरण की रचना की। वहां का राजा प्रसन्नचन्द्र उसी समय प्रभु की वन्दना करने के निमित्त आया । प्रभु की देशना सुन उसको उसी समय संसार के प्रति वैराग्य हो आया, तब अपने पुत्र को राज्य का भार दे उसने दीक्षा ग्रहण कर ली । उग्र तपस्या करते हुए राजर्षि प्रसन्नचन्द्र भगवान् के साथ बिहार करने लगे कुछ समय पश्चात् भगवात् महावीर के साथ वे राजगृही नामक नगरी में आये यह सुनते ही कि भगवान् महावीर राजगृह के समीपवर्ती बन में आये हुए हैं। राजा श्रेणिक अत्यन्त उत्कण्ठित चित्त से अपने परिवार के साथ उनकी वन्दना करने गया। उसकी सेना के आगे चलने वाले सुमुख और दुर्मुख दो सेनापति मिथ्यादृष्टि थे। वे आपस में कई प्रकार की बातें करते हुए जा रहे थे, मार्ग में उनको प्रसन्नचन्द्र मुनि दिखलाई दिये । वे एक पैर से खड़े होकर ऊंचे हाथ किये हुए आतापना कर रहे थे ! उनको देख कर सुमुख बोला । "ऐसी आतापना करने वाले मुनि के लिए स्वर्ग और मोक्ष कुछ भी दुर्लभ नहीं हैं।" यह सुन कर दुर्मुख बोला “अरे यह तो पोतनपुर का राजा प्रसन्नचन्द्र है, इसने अपने छोटे से लड़के को इतना बड़ा राज्य देकर उसके प्राणों पर कैसी विपत्ति खड़ी कर दी है। उसके मंत्री अब चम्पानगरी के राजा दधिवाहन से मिल कर उस लड़के को राजभ्रष्ट करने की कोशिश में लगे हुए हैं । इसी प्रकार इसकी पत्नियां भी कहीं चली गई हैं । यह कोई धर्म है। प्रसन्नचन्द्र के ध्यान-रूपी पर्वत पर इन वचनों ने वन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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