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________________ भगवान् महावीर २५६ अयोग्य के हाथ में आ पड़ा है इसको रखने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है, इसलिए यदि तुम्हें अपना राज्य एवं प्राण प्रिय है तो तुरन्त उसे मेरे अन्तः पुर में भेज दो।" दूत के इन भयङ्कर वचनों को सुन कर राजा शतानिक क्रोध से अधीर हो उठा। उसने कहा-"अरे अधम दूत ! तेरे मुख से इस प्रकार की बातें सुन मैं अवश्य तुझे भयङ्कर दण्ड देता, पर तू दूत है और दूत को मारना राजनीति के विरुद्ध है, इस लिए मैं तुझे छोड़ देता हूँ। तू उस अधम राजा को कह देना कि शतानिक तुम्हारे समान चाण्डालों से नहीं डरता"। इस प्रकार कह कर उसने तिरस्कार पूर्वक दूत को वहाँ से निकाल दिया। इसने वे सब बातें अवन्ति ( उज्जैनी) आ कर राजा चण्डप्रद्योत से कहीं, जिन्हें सुन कर वह अत्यन्त क्रोधित हो उठा। उसने उसी समय अपनी असंख्य सेना को कौशम्बी पर आक्रमण करने की आज्ञा दी और स्वयं भी उसके साथ चला । इधर अपने को चण्डप्रद्योत का सामना करने में असमर्थ समझ शतानिक अत्यन्त दुखी हुआ, यहां तक कि इस दुख के मारे उसके पाण भी निकल कये। ऐसे निकट समय में मृगावती की जो स्थिति हुई उसे बतलाना अशक्य है। पर फिर भी एक वीर स्त्री की तरह उसने सोचा कि मेरे पति की तो मृत्यु हो गई और "उदयन कुमार" अभी तक बालक ही है। ऐसे विकट समय में बिना किसी प्रकार का कपट जाल रचे काम नहीं चल सकता। यह सोच उसने एक दूत को चण्डप्रद्योत के पास भेज कर यह कहलाया "मेरे पति तो स्वर्ग चले गये, इसलिए अब तो मुझे आप ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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