SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर २५२ • या कर रहे हो"। उसके उत्तर में यदि वह कहे कि "मैं अमुक वस्तु बना रहा हूँ" तो इसमें वह किमी प्रकार की भूल नहीं कर रहा है । क्योंकि उसके गर्भ में कार्य का साधन बना हुआ है।" तुम्हारे समान छद्मस्थ को युक्त और अयुक्त का पूर्ण ज्ञान कैसे हो सकता है। और तुमने यह कहा कि "महान् पुरुषों का भी स्खलन हो जाता है" सो तुम्हारा यह कथन बिल्कुल मत्त प्रमत्त और उन्मत्त के समान है। जो किया जा रहा हो उसे किया हुआ कह देना *"ऐसा जो सर्वज्ञ का कथन है वह बिल्कुल ठीक है।" इसके पश्चात् उनके आपस में और भी गर्मागर्म बहस हुई। अन्त में वे सब लोग जमालि को छोड़ कर श्रीवीर प्रभु के पास चले गये। प्रियदर्शना ने अपने परिवार सहित पूर्व स्नेह के कारण जमालि का पक्ष ग्रहण किया । जमालि कुछ दिनों पश्चात् उन्मत्त हो गया और वह साधारण लोगों में अपने मत का प्रचार करता हुआ घूमने लगा। एक बार अपने ज्ञान के मद में मदोन्मत्त हो जमालि चम्पानगरी के समीपवर्ती पूर्णभद्र नाम के बन में गया। उस समय वहां पर प्रभु का समावशरण रचा हुआ था। वह समवशरण सभा में गया और बोला-"भगवन् ! तुम्हारे बहुत से शिष्य केवल ज्ञान को पाये बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो गये। पर मैं ऐसा नहीं हूँ, मुझे तो केवल ज्ञान और केवल दर्शन अक्षत रूप में प्राप्त हुए हैं । इससे मैं भी इस पृथ्वी पर सर्वज्ञ और सर्वदर्शी यह विषय बहुत गहरे तत्वज्ञान से सम्बन्ध रखता है । बहुत गम्भीर विचार और अध्ययन किये बिना इसका समझना कठिन हैं। किसी तर्कशास्त्र के पास जा कर इस विषय के जिज्ञासुओं को इसका ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy