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________________ २३७ भगवान् महावीर ग्रह करें। पर उस समय चन्दना के नेत्र में आँसू न थे। इस कारण प्रभु वहाँ से आगे चलने लगे। पर उनके जरा मुड़ते ही चन्दना इतनो अधीर हुई कि उसकी आंखों से टप टप आँसू गिरने लगे। यह देखते ही अभिग्रह पूर्ण समझ भगवान् मुड़े और उन्होंने उन कुल्माषों का आहार किया । प्रभु का अभिग्रह पूर्ण होते ही देवता बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने चन्दना के यहाँ पांच आश्चर्य प्रकट किये । उसी समय चन्दना की बेड़ियाँ टूट गई, और केशपाश पहले ही के समान सुन्दर हो गये । उसके पश्चात् राजा, राजमन्त्री, उसकी स्त्री आदि सब वहाँ आये और उस लड़की के प्रति भक्ति करने लगे, प्रभु के वहाँ से चले जाने पर राजा "शतानिक" चन्दना को अपने यहां ले आये और उसे कन्याओं के अन्तःपुर में रक्खा । पश्चात् जब प्रभु को कैवल्य प्राप्त हो गया तब उसने दीक्षा ग्रहण कर ली। वहां से विहार कर प्रभु सुमङ्गल, चम्पानगरी, मेढ़कग्राम आदि स्थानों में होते हुए “खडग मानि" ग्राम में आये, वहां पर ग्राम बाहर कायोत्सर्ग करके खड़े हो गये इसी स्थान पर उनके "त्रिपुष्ट" जन्म के बैरी शय्यापाल का जीव गुवाले के रूप में दो बैलों को चराता हुआ उधर आया, उसने किस प्रकार अपने पूर्वभव का बदला चुकाने के लिए उनके कानों में कीलें ठोक दी, किस प्रकार "खड़गवैद्य" ने उनको निकाला और निकालते समय प्रभ ने चीख मारी आदि सब बातों का वर्णन मनोवैज्ञानिक * हेमचन्द्राचार्य ने फिरकर वापस मुड़ने का कथन नहीं है यह कथन अन्यत्रं पाया जाता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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