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________________ भगवान् महावीर २३४ वाहन राजा की धारिणी नामक स्त्री और उसकी कन्या वसुमती इन दोनों को एक ऊँटवाला हर कर ले गया। धारिणी देवी के रूप पर मोहित होकर उस ऊँट वाले ने कहा कि “यह रूपवती स्त्री तो मेरी स्त्री होगी और इस कन्या को कौशाम्बी के चोरों में बेच दूंगा।" यह सुनते ही धारिणी देवी ने प्राण त्याग कर दिये। यह देख कर उस ऊंटवाले ने बहुत ही दुखित होकर कहा कि “ऐसी सती स्त्री के प्रति मैंने ऐसे शब्द कह कर बड़ा पाप किया। इस कृत्य के लिए मुझे अत्यन्त धिक्कार है"। इस प्रकार पश्चाताप कर वह उस कन्या को बड़े ही सम्मानपूर्वक कौशाम्बी नगरी में लाया । और उसे बेचने के लिए आम रास्ते पर खड़ी कर दी। इतने ही में धनावह सेठ उधर निकला और उसने उस कुमारी को उच्च-कुलोत्पन्न जान उसे बड़ी ही शुभ भावना से खरीद लिया । और उसे घर लाकर पुत्री की तरह सम्मानपूर्वक रखने लगा। उसका नाम उसने "चन्दना" रक्खा। कुछ समय पश्चात् उस मुग्ध कन्या का यौवन विकसित होने लगा। पूर्णिमा के चन्द्रमा को देख कर जिस प्रकार सागर हर्षोत्फुल्ल हो जाता है। उसी प्रकार वह सेठ भी उसे देखकर आनन्दित होने लगा । पर उसकी स्त्री मूला को उसका विकसित सौन्दर्य्य देखकर बड़ो ईर्षा हुई । वह सोचने लगी कि “श्रेष्टि ने यद्यपि इस कन्या को पुत्रीवत् रक्खा है, पर यदि उसके अभिनवसौन्दर्य को देखकर वह इससे विवाह कर ले तो मैं कहीं को भी न रहूँ।" स्त्री-हृदय की इस स्वाभाविक तुच्छता के वशीभूत हो कर वह दिन रात उदास रहने लगी। एक बार ग्रीष्म ऋतु के उत्ताप से पीड़ित होकर सेठ दुकान से घर पर आये । उस समय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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