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________________ २२७ भगवान् महावीर • त्रिपुष्ट वाले भव में इनको “विजयवती" नामक स्त्री थी। उस भव में इन्होंने इसका बड़ा अपमान किया था, उसो का बदला चुकाने के निमित्त उसने इन पर उपसर्ग करना प्रारंभ किया। उसने उस कड़ाके की सर्दी में बर्फ को तरह ठण्डी हवा चलाना प्रारंभ किया । और उसके पीछे अत्यन्त शीतल जल के बिन्दू प्रभु के नग्न शरीर पर डालने लगी। रात भर वह इस प्रकार उपसर्ग करती रही। पर प्रभु इससे तनिक भी विचलित न हुए। प्रातःकाल तक उनको विचलित न होते देख वह बड़ी विस्मित हुई, और अन्त में पश्चाताप पूर्वक प्रभु से प्रार्थना कर वह अन्तद्धीन हो गई। कुछ समय पश्चात् इधर उधर भ्रमण करता हुआ "गौशाला" प्रभु के पास आ गया, और कई प्रकार को क्षमा प्रार्थना कर उनके साथ भ्रमण करने लगा। वह चातुर्मास प्रभु ने "पालम्भिका" नामक नगरी में व्यतीत किया, वहां से प्रभु कुंडक, मर्दन, पुरिमताल, उष्णाक आदि स्थानों में गये । प्रायः इन सभी स्थानों में “गौशाला" ने अपनी मूर्खता के कारण मार खाई। वहां से विहार कर प्रभु ने आठवां चतुर्मास मासक्षपण के साथ राजगृह में व्यतीत किया-उसके पश्चात् उन्होंने सोचा कि अभी तक मुझे कर्मों की निर्जरा करना शेष है। यह सोच कर कों की निर्जना करने के निमित्त "गौशाला" सहित वे वज्रभूमि, शुद्धभूमि और लाट वगैरह म्लेच्छ भूमि में गये। इन स्थानों पर म्लेच्छ लोगों ने प्रभु पर नाना प्रकार के भयंकर उपद्रव किये, कोई उनकी निन्दा करता तो कोई हंसी, कोई दुष्ट भावों के वशीभूत हो कर शिकारी कुत्तों को उन पर छोड़ता तो काई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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