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________________ २२१ भगवान् महावीर लिया। तीसरे मास क्षपण के पूर्ण होने पर "सुनन्द" नामक गृहस्थ के यहां आहार लिया। "गोशाला" भी भिक्षावृत्ति से अपना निर्वाह करता हुआ दिन-रात प्रभु के साथ रहने लगा। एक बार कार्तिकमास की पूर्णिमा के दिन “गौशाला" ने सोचा कि ये बहुत बड़े ज्ञानी हैं, ऐसा मैं सुनता रहता हूँ। आज मैं स्वयं इनके ज्ञान को परीक्षा करके देखूगा । ऐसा विचार कर उसने महावीर से पूछा-"प्रभो" आज प्रत्येक घर में वार्षिक महोत्सव होगा । ऐसे मंगलमय समय में मुझे क्या भिक्षा मिलेगी इसके उत्तर में "सिद्धार्थ" नामक देवता ने महावीर के हृदय में प्रवेश कर कहा-“भद्र ! आज तुम्हें खट्टा, मट्ठा कूर धान्य (विशेष प्रकार का अन्न) और दक्षिणा में खोटा रुपया मिलेगा" यह सुन "गोशाला" प्रातःकाल से ही उत्तम भोजन की तलाश में घर घर भटकने लगा। पर उसे कहीं भी भिक्षा न मिली । अन्तमें जब सायंकाल हुआ तब एक सेवक उसे अपने घर ले गया। और खट्टा मट्ठा और कूर का अन्न भिक्षा में दिया । अत्यन्त क्षुधातुर होने के कारण वह उस अन्न को भी खा गया । तत्पश्चात् जाते समय उसने उसे एक खराब रुपया दक्षिणा में दिया । यह सब देख कर वह अत्यन्त लजित हुआ । इस घटना से उसने ___ *-हेमचन्द्राचार्य ने लिखा है कि जिस समय प्रभु भ्रमण को निकले थे उस समय इन्द्र ने उपसर्गों से इनकी रक्षा करने के लिए "सिद्धार्थ नामक देवता को अदृश्य रूप से रहने की आज्ञा दी थी। यह "सिद्धार्थ" हमेशा इनके साथ रहता था । और जहां कोई पश्नोत्तर का काम पड़ता, उस समय महावीर के हृदय में पूवेश कर यह उसका जबाब देता था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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